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अदब ना थे उनमें, वो नये रईस थे…

राज नर्तकी ने बडे अदब से राजा को सलाम किया और राज्य में होने वाले सालाना कार्यक्रम में अपना नृत्य प्रस्तुत किया। उसकी भाव भंगिमाएं सुर-ताल के अनुरूप अपना अदब प्रस्तुत कर रहीं थी। राजा को रिझाने वाले उसके प्रदर्शन मे कला थी प्रेम ना था ।


राजदरबार में बैठी जनता ने उसे बडे अदब से सराहा। यह देख राजा ने भी ऐलान किया कि यदि ओर भी कोई अपनी कला का प्रदर्शन करना चाहते हैं तो करे। एक योगी ने अपनी कला का प्रदर्शन कर राज दरबार के भवन में सभी को दिन में तारे दिखला कर अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी। सभी दंग रह गए योगी की कला से।
राज नृत्यांगना चित्रलेखा ने एकदम मना कर दिया ठहरो राजन मुझे ना तो तारें नजर आये ओर ना ही आकाश दिखा। योगी ने दो तीन बार अपनी कला बताई लेकिन हर बार ही चित्र लेखा मना करतीं रही। सभी हैरान थे और राजा भी परेशान हो गया कि आखिर यह चित्र लेखा ऐसा क्यो कर है
कार्यकम के अंत में राजा ने चित्रलेखा को विजयी घोषित कर दिया और सालाना श्रेष्ठ कलाकार की घोषणा कर उसके सर पर विजयी सेहरा बांध दिया। योगी की हार का दंड भी चित्रलेखा पर छोड़ दिया राज दरबार मे चित्र लेखा ने तलवार हाथ में ली ओर योगी के सामने खडी हो गयी दंड देने के लिए।
बडे अदब से चित्रलेखा ने योगी के चरणों में तलवार रख दी तथा अपना विजयी मुकुट योगी को पहना दिया ओर ऐलान कर दिया कि अब योगी का दंड पूरा हो गया। इस तरह अपना अपमान समझ योगी राज दरबार से चले गए ओर चित्र लेखा भी उसके पीछे भागती गयी।
इतिहास जो भी रहा हो लेकिन एक राज नृत्यांगना का अदब उजागर हुआ। उसने झूठ को भी अदब से घारण कर योगी को योग का अदब सिखा दिया ओर योगी भी समझ गए कि राजा से पुरस्कार लेना योगी का अदब नहीं होता ओर वो सांसारिक सुखों से दूर जन कल्याण के कामो में ही लगा रहता है ना की योग का व्यापार करने के लिए सर्वत्र भटकता फिरता है।
रईसों की संस्कृति का मूल्यांकन धन से नहीं वरन् उनके गुणों से आकां जाता है। कोई मन का रईस होता है, कोई तन का रईस होता है तों कोई धन का रईस होता है। ओर इन रईसों का अपना एक अदब होता है। उस अदब से ही उनका मूल्यांकन हो जाता है कि सब नये रईस है या पुराने। नये रईसों की संस्कृति मे नकारात्मक मूल्यो की सोच होतीं हैं और मानव मूल्यो का वहां कोई स्थान नहीं होता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जो भूमिका तुझे मिली है उसको उसी मानदंड के अनुसार तू उसे अदा कर नहीं तो नया रईस बन भी वो अदब तुझमें ना आ पाएंगे और तेरी रईसी में अहंकार का जन्म होगा और वो सभी को तबाह करने पर उतारू हो जायेगा। इसलिए हे मानव तू मानव होने का अदब सीख और मानवता के मूल्यो की परवाह कर नहीं तो तेरी रईसी एक दिन फिर भीख मांगने का अदब भी नहीं सीख पायेंगी। यही चित्र लेखा का अदब सिखाता है।

-भंवरलाल

ज्योतिषी एवं संस्थापक, जोगणिया धाम, पुष्कर

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