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आई है ऋतु हरि आवन की…

भंवरलाल, ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक, जोगणिया धाम पुष्कर

न्यूज नजर : सावन की ऋतु परमात्मा के आने का संदेश देती है और परमात्मा के प्रत्यक्ष दर्शन करा कर सभी को सुखी समृद्ध बना देती है। मानव शरीर पंच महाभूतों की रचना होती है। इन पंच महाभूतों में धरती, आकाश, अग्नि और हवा का प्रत्यक्ष दर्शन हमें प्रतिदिन होता है लेकिन जल तत्व का दर्शन हमें प्रतिदिन तो होता है लेकिन वह संचित जल का होता है क्योंकि रोज वर्षा के रूप में जल बरसता नहीं है। वर्षा ऋतु का आगाज़ सावन मास करता है और आकाश से बादल वर्षा कर इस जल तत्व का प्रत्यक्ष दर्शन हमें देता है।

आकाश से जल का बरसना यह प्रकृति का ही गुण है जो सर्वत्र बरसती है। मानव तो कृत्रिम वर्षा केवल कुछ क्षेत्र में ही संचित जल से ही करा सकता है। सावन मास और वर्षा ऋतु हमें जल तत्व के रूप में परमात्मा के दर्शन कराती है। यह परमात्मा धरती को हरा भरा कर सर्वत्र हरियाली फैला देता है और वनस्पति उत्पादन के साथ-साथ जल के स्त्रोतों को भर देता है, भूमि का जलस्तर बढा देता है। यह सब कार्य जब प्रकृति करती है अपने स्वाभाविक नियमों के तहत तो लगता है कि कोई ईश्वरीय शक्ति है जो हरि के रूप में विद्यमान है और जीव जगत को जीवित रखने के लिए निरंतर अपना कार्य कर रही है।

 आषाढ़ मास में सूर्य की प्रचंड गर्मी में तप करती हुईं धरती सभी साधकों को पीछे छोड़ देती हैं क्योंकि साधक हद और बेहद तक ही तप कर सकता है और धरती तपती रहती है भले ही वर्षा ऋतु वर्षा बरसाये या ना बरसाये। वर्षा रूपी हरि अर्थात परमात्मा से मिलन नहीं करती धरती फिर अकाल को लेकर भी तप करती है और इसी धैर्य को रख कर अपना अस्तित्व बनाये रखती है कि कभी तो परमात्मा रूपी वर्षा आयेगी ही। 

साधक वर्षा ऋतु में चातुर्मास के लिए प्रकृति की विपदा से बचने के लिए सुरक्षित स्थान पर रहता है जबकि धरती चातुर्मास के हर दुख झेल कर भी बरसात रूपी परमात्मा हरी का स्वागत कर हरी-भरी हो जाती है और जगत का प्रत्यक्ष कल्याण करती है।

 सरोवर के जल में एक कछुआ और कछवी रहते थे। वह दोनों परमात्मा के परम भक्त थे। उन दोनों ने भी सुन रखा था कि वर्षा ऋतु में परमात्मा दर्शन देने धरती पर आते हैं। यह सोच कर वह सरोवर से बाहर निकले और परमात्मा के दर्शन करने के लिए धरती पर विचरण करने लगे। एक शिकारी ने उन दोनों को देख लिया और दोनों को पकड़ अपने झोले में डाल लिया और अपने घर ले गया।

 

अपनी झोपड़ी के बाहर चूल्हा जलाकर उसने पानी का एक कडाव चढाया और उसमें कछुआ और काछवी को डाल दिया। पानी गर्म होने लगा। कछुआ और काछवी घबराने लगे। काछवी कहती है कि हे कछूवे अब हमारे प्राण निकल जायेंगे और परमात्मा की बातें यही धरी रह जायेंगी। कछुआ कहता है कि तू धीरज रख। यदि तेरे पांव जल रहे हैं तो तू मेरी पीठ पर बैठ जा लेकिन मेरे परमात्मा की निंदा मत कर। पानी ज्यादा गर्म होने लगा तो कछुआ भी सोचने लगा कि परमात्मा आयेंगे जरूर क्योंकि यह ऋतु तो हरि अर्थात परमात्मा से मिलन की है। इतने में घनघोर बादल अचानक आये, तेज तूफान चला तथा मुसलाधार वर्षा शुरू हो गयी। ऐसे होते ही शिकारी की झोपड़ी उड़ गयी और जलता हुआ चूल्हा बुझ गया। पानी का गर्म कडाव जिसमें कछुआ और काछवी थे वह भी धरती पर गिर पड़ा और कछुआ और काछवी को वर्षा के जल से राहत मिली।

तब कछुआ कहता है कि हे काछवी देख परमात्मा हमें बादलों के रूप में मिले हैं और सही मायने में यही इस धरती के भगवान हैं जिनके  कारण जीव व जगत अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं।

 संतजन कहते हैं कि हे मानव, परमात्मा वर्षा के रूप में प्रत्यक्ष दर्शन हमें देने के लिए इस धरती पर आते हैं और जीव जगत को जीवित रखने के लिए जल बरसाते हैं। कथा कीर्तन हरिभजन और आध्यात्म इस परमात्मा की ही भक्ति करते हैं कि हे परमात्मा तू मेघ बन कर बरस ताकि प्राणी सबसे पहले जिन्दा रह सके।

इसलिए हे मानव, यह वर्षा ऋतु हरि अर्थात परमात्मा से मिलन का संदेश देती है और कहती है कि इस परमात्मा रूपी जल का हरसंभव संरक्षण कर ताकि हर रोज तुझे इस परमात्मा के दर्शन होते रहे और तेरा अस्तित्व बना रहे। जल के बिना कुछ भी नहीं है और यह है  तो सब कुछ है। नहीं तो जप तप ज्ञान की बातें और आध्यात्म सत्संग, यह सब आकाश के तारों की तरह आदर्श ही बन कर रह जाएंगे।

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