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शरद ऋतु के संकेत, व्यवस्थाएं परिवर्तन की ओर 

भंवरलाल, ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक जोगणिया धाम, पुष्कर

 

न्यूज नजर : शरद ऋतु अपने परवान की ओर बढती जा रही है और संदेश दे रही है कि हे मानव अब सर्द ऋतु की शनै शनै आहट आने लग रही है इसलिए तू अपने शरीर के तापमान को संतुलित रख कर ही शरीर की व्यवस्थाओ को अंजाम दे। सूर्य अब दक्षिणायन और दक्षिण गोल में लगातार आगे बढ रहा है और 22 अक्टूबर से हेमंत ऋतु का आगा करेगा। ऋतु परिवर्तन का यह काल एक यमराज की दृष्टि जैसा होता है। इस कारण इस शरीर के तापमान और ऋतु के तापमान में उचित संतुलन बनाये रखना पडता है अन्यथा शरीर की व्यवस्थाए बिगड जायेगी और अनावश्यक इस ॠतु की पूर्व संध्या के मौसमी रोग घेरने लग जाएंगे।
शरद काल के शारदीय नवरात्रा भी 17 अक्टूबर से शुरू हो जाएंगे जो अपने शरीर की आन्तरिक ऊर्जा बढाने कर शरीर को निरोगी रख कर सुखी और समृद्ध रहने के संदेश देते। शरीर की व्यवस्था बिगडने से मृत्यु तुल्य कष्टो को ही भोगना पडता और कोरोना काल का संकट भी पूर्ण रूप से घर मे ही बैठ कर अकले मे ही शक्ति आराधना के संदेश दे रहा है ताकि व्यवस्था कोई भी बिगडे नही।
 व्यवस्थायें तो उन वीणा के तारों की तरह होती हैं  जिन्हे सदा ही संयमित रखा जाता है। जैसे ही वीणा के तारों पर अनावश्यक दबाव बढाय जाता है तो वो तार टूट जाता है और वीणा के सुर बेबस होकर बिखर जाते है और उन स्वरो से माहौल दूषित हो जाता है और यह दूषित माहौल सुख शांति समृद्धि को गिरवी रख कर अशांति का तांडव कर व्यवस्था को बदलने के लिए चीख पुकार करने लग जाते हैं।
    जहाँ वीणा के सुरों की पूर्णता के साथ छेड़खानी हो जाती हैं तो वीणा और तारों के सम्बंध में दूरियाँ बढ़ जाती हैं और उनके रिश्ते में अलगाव हो जाता है और वीणा को बजाने वाला पीडित हो जाता है क्यो कि उसके स्वर माहोल को अनुकूलता प्रदान नहीं करते हैं और गायक कार का गला भी बेसुरा होकर श्रोताओं को भागने के लिए मजबूर कर देता है और अंध भक्त श्रोता दुख पाकर भी उस बेसुरे गायन की वाहवाही करता है और सब कुछ सहन कर उसे विश्व के मुख्य गायक की उपाधि से नवाजता है।
    जीवन के रिश्तों में यदि ये तारतम्य बिगड़ जाता है तो उनमें स्वत ही अलगाव शुरू हो जाता है और रिश्ते बिखरने लग जाते हैं। जिनमे बहुत कुछ झेलने की क्षमता होती है तो वे हर बार हर स्थिति से समझोता कर अपने आप को बनाये रखते हैं।
  सामाजिक धार्मिक आर्थिक राजनैतिक तथा किसी भी प्रकार की व्यवस्था हो उनमें यह तारतम्य बिगड़ जाते हैं तो उदेश्य असफल होकर ठोकर खाकर गिर पडता है और सागर मंथन के उस मथने वाले यंत्र का आधार मजबूत नहीं होता है और वो पर्वत के शिखर के की तरह समुद्र मंथन से पूर्व ही देव व दानव दोनों पर गिर कर मार देता है फिर युक्ति की महामाया विष्णु जी को कछुआ बना कर समुद्र मे उतारती है और उस की मजबूत पीठ सख्त आधार बन कर पर्वत शिखर के वज़न को सह कर समुद्र मंथन करा रत्नों को बाहर निकाल कर लाती है।
संत जन कहते हैं कि मानव शरद ऋतु आगाज करने हुए संदेश दे रही है कि हे मानव रिश्तो की गरमी को संतुलित रख और अपने दायित्व से मत भाग। ये वीणा के तार है यदि उसको तू ओर ज्यादा कसेगा तो तू खुद भी बेसुरा होकर श्रोताओं को भागने के लिए मजबूर कर देगा और तेरी हर व्यवस्था ही तुझे एक ही तलाक मे निपटा देंगी।
             इसलिए हे मानव व्यव्स्था में तारतम्य बनाने के लिए वीणा के तारों की तरह संयमित दबाव बनाये रख कर अनुकूल स्वरो की प्राप्ति की तरह ही व्यवस्था के उद्देश्य को फलीभूत किया जा सकता है चाहें विचार धारा या कोई भी व्यक्ति क्यो ना हो।

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