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अयोध्या में मस्जिद के लिए हिन्दू परिवार ने की जमीन देने की पेशकश

अयोध्या। रामजन्मभूमि विवाद का फैसला सुप्रीम कोर्ट से आने के बाद मस्जिद के लिए जमीन मुहैया कराने के प्रस्ताव अयोध्या के स्थानीय लोगों से आने शुरू हो गए हैं।

न्यायालय ने अयोध्या मामले पर श्रीरामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की अनुमति देने के साथ मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन अयोध्या में देने का निर्देश दिया है जिस पर जिला प्रशासन तलाशना शुरू कर दिया है।

इस बीच श्रीरामजन्मभूमि पर विराजमान रामलला से करीब 30-35 किमी की दूरी पर विभिन्न तहसीलों में मुस्लिम समाज के लिए मस्जिद बनाने के लिए जमीन तलाशने का काम प्रशासन ने जोर शोर से शुरू कर दिया है।

दूसरी तरफ जिले के बड़ा गांव के पास सारंगापुर रोड पर राजनारायण दास मस्जिद बनाने के लिए खुशी से अपनी पांच एकड़ जमीन देने को तैयार हैं। इस सिलसिले में वो जल्द ही जिलाधिकारी से मिलकर अपना प्रस्ताव सौंपेगे।

राजनारायण दास का कहना है कि उनके पास बड़ा गांव के पास सारंगापुर रोड पर पांच एकड़ जमीन है उसे मस्जिद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

उधर, मस्जिद तलाशने के लिए जिलाधिकारी ने सभी पांचों तहसीलों से रिपोर्ट मांगी है जिसमें सदर तहसील के पूरा विकास के अन्तर्गत शहनवा ग्राम सभा एक बार फिर से चर्चा में आ गई है। इसके अलावा, सोहावल, बीकापुर, सदर तहसील क्षेत्र में भूमि की तलाश राजस्व विभाग ने शुरू कर दी है।

शहनवा ग्राम सभा में बाबर के सिपहसालार मीर बांकी की कब्र होने का दावा किया जाता रहा है। इस गांव के निवासी शिया बिरादरी के रज्जब अली और उनके बेटे मोहम्मद अफजल को बाबरी मस्जिद का मुतवल्ली कहा गया है। इसी परिवार को ब्रिटिश हुकूमत की ओर से तीन सौ दो रुपए छह पाई की धनराशि मस्जिद के रखरखाव के लिए दी जाती थी।

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के दावे में इसका जिक्र भी किया गया है। यह अलग बात है कि बाबरी मस्जिद पर अधिकार को लेकर शिया वक्फ बोर्ड व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच विवाद के बाद वर्ष 1946 में कोर्ट ने सुन्नी बोर्ड के पक्ष में सुनाया था।

मिली जानकारी के अनुसार इसकी किसी दूसरे मुतवल्ली का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। फिलहाल पूर्व मुतवल्ली वारिसान आज भी इसी गांव में रह रहे हैं। इस वारिसान की ओर से भी मस्जिद निर्माण के लिए अपनी जमीन दिए जाने की घोषणा की जा चुकी है। जहां तक अयोध्या के संत-धर्माचार्य या विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारियों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी को मान्य है लेकिन बाबर के नाम से मस्जिद स्वीकार नहीं है।

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