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इस बार जन्माष्टमी मनाने वृन्दावन चलिए, वहां दिन में मनता है कान्हा का जन्मोत्सव

मथुरा। देश के अन्य देव स्थानों की तरह ब्रज के अधिसंख्य मंदिरों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी रात में मनाई जाती है वहीं यशोदा भाव से सेवा होने के कारण वृन्दावन के चार मंदिरों में दिन में ही कान्हा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार ब्रज में जन्माष्टमी 24 अगस्त को मनाई जाएगी।

राधादामोदर मंदिर के सेवायत आचार्य कनिका गोस्वामी ने बताया कि यशोदा भाव से सेवा में हर पल इस बात का ख्याल रखा जाता है कि सेवा एक बालक की हो रही है। श्रीकृष्ण का अवतरण लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व हुआ था और वर्तमान में तो केवल प्रत्येक जन्माष्टमी पर उनकी साल गिरह मनाते हैं। चूंकि बालक का रात के 12 बजे जगाना ठीक नही है इसलिए सप्त देवालयों में से तीन यानी राधादामोदर, गोकुलानन्द एवं राधारमण मंदिर में दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है।

उन्होंने बताया कि इसका एक कारण यह भी है कि जीव गोस्वामी जन्माष्टमी पर वृन्दावन के सप्त देवालयों में ठाकुर का अभिषेक किया करते थे। संभवतः सभी सप्त देवालयों में रात में अभिषेक करना संभव नही था इसलिए वे राधादामोदर, राधारमण एवं गोपीनाथ मंदिर में दिन में अभिषेक किया करते थे और अन्य मंदिरों में रात में किया करते थे।

सेवायत आचार्य ने बताया कि जन्माष्टमी के दिन प्रातः मंदिर के सेवायत यमुना जल लाते हैं तथा दूध, दही, घृत, बूरा, शहद ,औषधियों एवं महा ओषधियों से दामोदर जी, वृन्दावन चन्द्र, माधव, छैलचिकनिया के चल विगृह, गोपालजी एव गिर्राज शिला का अभिषेक वैदिक मंत्रों के मध्य कई घंटे तक करते हैं। ब्रज के देवालयों में केवल यही एक ऐसा देवालय है जहां पर वह पावन गिर्राज शिला है जिसे स्वयं श्यामसुन्दर ने सनातन गोस्वामी को दिया था। इस विग्रह का पूजन भी जन्माष्टमी पर इस मंदिर में होता है क्योंकि इसे अति पावन माना गया है।

अभिषेक के बाद मंदिर का वातावरण एक प्रकार से होली जैसा हो जाता है तथा भक्तों पर हल्दी मिश्रित दही डाला जाता है। इसके बाद ठाकुर का श्रंगार किया जाता है तथा ठाकुर की आरती होती है ।शाम को छप्पन भोग का आयोजन किया जाता है।

राधारमण एवं गोकुलानन्द मंदिर में भी इसी प्रकार का अभिषेक दिन में होता है, अंतर यह है कि राधारमण मंदिर में अभिषेक चार से पांच घंटे तक चलता है। राधारमण मंदिर के सेवायत दिनेशचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि जन्माष्टमी पर 27 मन दूध, दही, धी, बूरा , शहद, औषधियों एवं महाऔषधियों से ठाकुर का अभिषेक होता है तथा बाद में इसी चरणामृत को वृन्दावनवासियों तथा तीर्थयात्रियों में बांटा जाता है। इस चरणामृत को पीकर ही वृन्दावनवासी जन्माष्टमी के व्रत का परायण करते हैं।

उन्होंने बताया कि इस दिन अभिषेक किए गए ठाकुर के वस्त्र को भी भक्तों में बांटा जाता है जिसे धारण करने से मानव दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्त रहता है।

वृन्दावन के ही गोकुलानन्द मंदिर में भी इसी प्रकार का अभिषेक होता है और टेढ़े खंभे वाला मंदिर के नाम से मशहूर शाह जी मंदिर में भी इसी प्रकार दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है। शाह जी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रशांत ने बताया कि मंदिर में सभी त्योहार राधारमण मंदिर जैसे ही मनाए जाते हैं इसलिए इस मंदिर में जन्माष्टमी दिन में मनाई जाती है।

चूंकि वृन्दावन के उक्त चार मंदिरों में दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है इसलिए जन्माष्टमी के दिन पूर्वान्ह में वृन्दावन के उक्त मंदिर तीर्थयात्रियों के केन्द्र बन जाते हैं और वृन्दावन की गली गली राधे राधे की प्रतिध्वनि से गूंज उठती है।

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