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कोई भी कम नहीं, किसी में भी दम नहीं

न्यूज नजर : पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि देव ओर दानव दोनों ही अपनी अपनी शक्ति में कोई भी कम नहीं रहें लेकिन विकट समस्या खड़ी होने पर कोई भी दमदार साबित नहीं हुए। जब मधु, कैटभ, महिषासुर, शुंभ, निंशुभ जैसे महादैत्य प्रकट हुए तो उन्हें कोई भी परास्त नहीं कर पाया।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

तब शक्ति ने अपना प्रचंड स्त्री रूप प्रकट कर इन महादैत्य को मार डाला और अपना दम दिखा कर दैव और दानव को बता दिया कि स्त्री शक्ति सदा बलवान होती है। आदि काल से ही स्त्रियां अपने ही बलबूते पर शक्ति बन कर व्यवस्था को संतुलित करती रही। अपनी शक्ति का बखान दूसरों के कंधों का सहारा लेकर करने वाला “अकेला” व्यक्ति या “बहुत सारे व्यक्तियों का समूह” करते हैं तो सब की असलियत सामने आ जाती है कि किसी में भी दम नहीं है और कोई भी दमदार नहीं है। अपनी शक्ति प्रदर्शन में यह सब कोई भी अपनें आप को किसी से कम नहीं समझते हैं।

अखाडे में पहलवान जब कुश्ती लडता है तो वह केवल अपने ही बलबूते से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है और समझ में आ जाता है कि अमुक पहलवान दमदार है क्योंकि वह सीधे ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है।

अपनी विजय के लिए दूसरों की आड़ लेकर या दूसरे पहलवानों पर आरोप लगा कर वह कुश्ती नहीं जीत सकता है। पहलवानों की शक्ति का परीक्षण केवल दो व्यक्ति की अपनी अपनी शक्ति ही करती हैं जो बोलती नहीं है जमीनी स्तर पर करके दिखाती है।

राजतंत्र में राजा भी एक वीर पहलवान की तरह अपनी शक्ति के बलबूते से राजा बनता था और अपनी इच्छाओं के अनुसार ही अपने राज को चलाता था। प्रजातंत्र के अखाडे में प्रजा ही राजा चुनने का काम करती है। इस अखाडे में भी विभिन्न शक्ति समूह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। कोई बहुत बडा समूह होता है तो कोई मध्यम तो कोई छोटा होता है और बहुत कम लोग अकेले ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन प्रजातंत्र के अखाडे में करते हैं।

प्रजातंत्र में जब कोई अकेला बिना दल के जीत जाता है तो उसकी शक्ति का भान हो जाता है। कोई सम्मिलित रूप से कोई अपने दल संख्या के आधार पर जीत हासिल करता है तो उस जीत में बहुत सारी शक्तियों का समावेश होता है। सबकी स्वतंत्र शक्ति और दल की शक्ति।

राज तंत्र में अकेले राजा की शक्ति दमदार दिखाई पड़ती है और प्रजातंत्र में कोई भी किसी से कम नहीं होता है और सब एक को शक्ति सौंप कर उसे दमदार बना देते हैं तथा अधिकार और दायित्वों की भूमिका से सुशोभित कर देते हैं तथा प्रजा तंत्र में सभी की सम्मिलित शक्तियां काम करती है।

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि स्वर्ग के सिंहासन पर शक्ति सम्पन्न को देव समूह चुनकर राज सिंहासन पर बैठाते हैं जिनका पूर्ण अनुमोदन त्रिदेव करते हैं और आपातकाल काल में यह त्रिदेव स्वर्ग के राजा की सहायता करते हैं।

एक बार स्वर्ग के सिंहासन पर दानव समूह के दैत्य राज़ शुंभ निशुंभ ने का कब्जा हो गया तब सभी देव और त्रिदेव वापस स्वर्ग के सिंहासन को जीत नहीं पाए। हालांकि सभी देव कोई किसी से कम नहीं थे लेकिन कोई भी दमदार नहीं दिखाई पडा जो भारी विपदा का खुद सामना कर ले। दूसरे की मदद से सत्ता पाने के लिए प्रयास करने लगे।

ऐसे समय में स्त्री शक्ति प्रकट हुईं और बोली तुम कोई भी कम नहीं हो लेकिन तुम में से किसी में दम नहीं जो दूसरों की बैसाखी के सहारे स्वर्ग का राज़ सिंहासन पाना चाहते हो। कोई कुछ भी ना बोला और त्रिदेव भी अपनी मजबूरी बताने लग गए। तब स्त्री शक्ति ने अपना रूप प्रचंड किया तथा दानवों को मार डाला तथा देवों को पुनः स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, स्त्री शक्ति का दिवस तो आदिकाल से ही मनता आ रहा है वर्ष में चार बार नवरात्रा के रूप में, दो गुप्त नवरात्रा और दो प्रकट नवरात्रा। स्त्री का इस जगत में जन्म लेना ही लक्ष्मी रूप माना जाता है और उसे ही त्याग तपस्या ममता की मूरत माना जाता है।

आदिकाल से ही स्त्रियों ने अपने आप को खुद अपने बलबूते से स्थापित किया है। सती अनुसूया सावित्री इन्हीं में से है और वर्तमान तक भी स्त्रियां अपनी शक्ति का लोहा दुनिया में मनवा रहीं हैं, जो घर में भी रहती हैं वे घर को परिवार के लिए स्वर्ग बना रही है।

इसलिए हे मानव, हर दिन महिलाओं का ही दिवस होता है भले ही हम एक दिन मना ले क्योंकि हर दिन घर परिवार चलाने का काम केवल महिलाओं द्वारा ही किया जाता है भले ही वे बाहर कामकाजी महिला ही क्यों न हों। घर ही नहीं बाहर शासन, प्रशासन करने वाली महिलाएं भी घर परिवार में अपनी स्त्री की भूमिका में ही रहतीं हैं और घर के कामों को अंजाम देतीं हैं।

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