Breaking News
Home / breaking / देव मूर्तियों की बदलती करवट और जलझूलनी एकादशी

देव मूर्तियों की बदलती करवट और जलझूलनी एकादशी

 

न्यूज नजर : अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ सूरज मेष राशि से कन्या राशि में प्रवेश कर चुका है। मेष राशि से 150° दूर वो कन्या राशि की 30°डिग्री पूरी करने के लिए आगे बढ़ रहा है और इसी राशि को पार करते हुए अपने सफ़र की 180° तय करता हुआ अब विपरीत दिशा की ओर बढने लगेगा।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

अर्थात अब दाहिने से बायीं तरफ बढ़ रहा है। इस बायीं ओर तुला वृश्चिक धनु मकर कुंभ मीन राशि के तारा मंडल को पार कर फिर मेष में प्रवेश करेगा।
दायी करवट में सूर्य को बसन्त, गर्मी और वर्षा ऋतु का सामना करना पड़ता है। उसके बाद बायी ओर उसे सर्दी, शिशिर और हेमन्त ऋतु का सामना करना पड़ता है।

चतुर्थ मास का अब आधा समय बीत चुका है और वर्षा ऋतु के बाण भी अब कभी कबार और शनै: शनै: आने लगते हैं और सूर्य की बदलती स्थिति अब सर्द की ओर बढ रही है।
धार्मिक मान्यताओं में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी माना जाता है।देव शयनकाल में इस दिन चल देव मूर्तियां का नगर भ्रमण करा उन्हे पवित्र नदी तालाब या जल के किनारे ले जाकर उनको स्नान कराया जाता है तथा पंचामृत का भोग अर्पण कर पुन शयन करा दिया जाता है लेकिन उनकी करवट बदल कर बायीं तरफ कर दी जाती है और देव पुनः शयन काल में चले जाते हैं।

पुराणों की मान्यता के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है । पहले से ही स्थापित प्रतिमा का उत्सव करके उसे जलाशय के निकट ले जाया जाता है ओर जल सें स्पर्श करा कर उसकी पूजा की जातीं हैं फिर घर लाकर बायीं करवट से सुला दिया जाता है । दूसरे दिन प्रातकाल द्वादशी को गन्ध आदि से वामन की पूजा कर और भोजन करा दक्षिणा दी जाती है।
इस दुनिया के प्रपंच से मुक्त होने की एकादशी है यदि इस प्रकार पूजा कर ली है तो, ऐसी मान्यता नारद पुराण की है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पद्म पुराण के उतर खंड में सूर्य वंश के राजा मान्धाता के राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी ।एक बार अकाल पड़ गया तीन वर्ष तक । मनीषियोंकी सलाह पर राजा अपने कुछ साथियों के साथ वन में गये वहां अंगिरा ऋषि के दर्शन हुए।
ऋषि ने पद्मा एकादशी के व्रत के बारे में बताया ।व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और अकाल खत्म हुआ ।
इस दिन जल सें भरा कलश वस्त्र से ढककर दही व चावल के साथ मंदिर में अर्पण किये जाने की प्रथा है ।छाता और जूते भी दान देने की प्रथा है ।
कुल मिला कर इस एकादशी को भगवान का उत्सव मना कर तालाब में भगवान की प्रतिमा को स्नान करा मंगल गान के साथ वापस अपने स्थान में चल प्रतिमाओ को स्थापित करनी चाहिए ।
सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन से जुड़ी ये धार्मिक मान्यताएं सदियों से आज तक विद्यमान हैं और ठाकुर जी के नगर भ्रमण हर वर्ष होते रहते हैं।

जोगणिया धाम की रेवाड़ी आज

जोगणिया धाम पुष्कर के प्रवक्ता इन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि जलझूलनी एकादशी के अवसर पर गुरुवार को शाम 4 बजे सातु बहना बिजासन मां तथा बाबा रामदेव जी की रेवाड़ी गाजे-बाजे से निकाली जाएगी। नगर भ्रमण कर तीर्थ सरोवर पुष्कर के जल से अभिषेक कराया जाएगा। इसके बाद रेवाड़ी पुनः जोगणिया धाम पहुंचेगी।

 

यह भी पढ़ें

आत्मा का प्रत्यारोपण …

Check Also

कांग्रेसियों ने लगाई ‘छान’, दुहारी की तैयारी

सन्तोष खाचरियावास अजमेर। आम चुनाव का बिगुल बजते ही शहर के कांग्रेसी अपनी-अपनी बाल्टी-चरियाँ लेकर …