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धरती की पाक अग्नि साधना और वर्षा रूपी महान तीर्थ 

 

न्यूज नजर : काश यह धरती अग्नि साधना नहीं करती तो जगत में जल नहीं होता और जीवन भी नहीं होता। प्रकृति ने इस स्थिति को संतुलित कर पृथ्वी को चलायमान कर दिन व रात तथा ऋतु परिवर्तन जैसी स्थितियों को उत्पन्न किया। इस ऋतु परिवर्तन के कारण ही धरती को पवित्र अग्नि साधना करनी पड़ती है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ सूर्य जब वृष राशि और मिथुन राशि में भ्रमण करता है तो पृथ्वी को अपनी गर्म किरणों से तपा देता है और लगता है कि सूरज आसमान से आग बरसा रहा है। पृथ्वी पर जन जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है और सर्वत्र जल के स्त्रोत सूख जाते हैं हरियाली खत्म हो जाती है। धरती आग की तरह तपने लगतीं हैं जैसे कोई संत अपने चारो तरफ आग जला कर आसमान के नीचे दिन भर साधना कर रहा है। 

 धरती जब अग्नि साधना करती है तब ही वर्षा रूपी तीर्थ प्रकट होते हैं और यही वर्षा रूपी रूपी तीर्थ जगत का कल्याण करते हैं। बिना भेद बुद्धि रखे वर्षा रूपी तीर्थ सभी जीवो को जल का सेवन करा कर उनके जीवन की यात्रा को पूरी करते हैं।

 यह काल बल की ही प्रधानता होती है कि सूर्य सदा पृथ्वी को अग्नि साधना में नहीं लगा सकता है। अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ सूर्य तथा सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती हुई पृथ्वी पर स्थान बल भारी पड जाता है और फलस्वरूप वर्षा रूपी तीर्थ के जल से ऋतुएं श्रृंगार कर पृथ्वी को हरा भरा रखती है और उसे वनस्पति फलों- फसलों से परिपूर्ण रखती हैं। 

     पृथ्वी की यह पवित्र अग्नि साधना व्यर्थ नहीं जाती वरन पृथ्वी पर मौजूद जल के समुद्र भी इससे भांप बन कर प्रचंड जल राशि के मेघ बन कर बरसते हैं पूरी धरती को जल से स्नान करा देते हैं, धरती जल से परिपूर्ण हो जीव व जगत का जमीनी तीर्थ बन जाता है और जिसमें नहा धोकर लोग अपने पसीने से ही शुद्धिकरण नहीं करते वरन जल को पी कर लोग शरीर में व्यापत हर रोगों व गर्मी को दूर कर करते हैं और धरती अपने हर उत्पादनों को देने वाली बन जाता है।

         संतजन कहते हैं कि हे मानव आस्था और श्रद्धा का उपासक जब कोई कड़ी साधना व्रत या रोजे अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव के लिए करता है तो वह इन साधना से अपनी आंतरिक ऊर्जा को बढा कर सुकून पाता है और लगता की परमात्मा ने रहमत की वर्षा कर दी है और मन खुश हो कर उत्सव और ईद मनाता है ।

       

इसलिए हे मानव सूर्य की गर्मी जो आग के गोलों जैसी धरती पर पड रही है और धरती को पवित्र अग्नि साधना करा रही। यह सब व्यर्थ नहीं जायेगी और वर्षा रूपी महान् तीर्थ स्थापित करेंगी यह प्रकृति की एक व्यवस्था है जो मानव को जप तप व्रत ओर रोजे के लिए प्रोत्साहित कर उनकी आंतरिक ऊर्जा को बढाती है और हर चुनौतियों से मुकाबला करा देती है।

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