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पार्वती की शादी शिव के साथ हो रही…

आज कैलाश पर्वत पर फूलों की बरसात हो रही है। ढोल नगारे नोबत और शादीयाने बज रहे हैं। देव, दानव व भूत प्रेत पिशाच तन मन से नाच रहे हैं और बसंत ऋतु भी परवान पर चढ़ अपने प्रिय से मिलन के लिये आतुर होकर सर्वत्र फूलों की बरसात कर रही हैं। देव मिलकर शिव की जय जय कार कर रहे हैं। कैलाश पर्वत पर महादेव की शादी की तैयारियां चल रही हैं।

शादी के गीत गाने के लिए महा लक्ष्मी जी और महा सरस्वती जी ब्रह्मांड की समस्त देवियों को लेकर कैलाश पर्वत पर पहुंच गई हैं। विवाह के गीत शुरू हो गये है और लक्ष्मी जी अपनी सखियों के साथ महादेव के मेहंदी पीठी कर रही हैं।

जगत पिता ब्रहमा जी और नारायण समस्त देवों को लेकर शिव की बारात में जाने के लिए आ गये हैं। शिव के रंग रूप मे मेहंदी ओर पीठी ने निखार ला दिया है। नंदी सज धज कर तैयार है और शिव उस पर बैठ कर अपना शंखनाद करते हैं। इतने में सातों ब्रह्माण्ड से सातो शक्तियाँ आतीं हैं और शिव की बारात की अगवानी करके बारात को पर्वत राज़ के घर ले जातीं हैं।

चौदहवीं का चांद यह नजारे देख मन में बहुत प्रसन्न हो रहा था कि आज शिव की शादी है और कल फिर अमावस्या की काली रात में शिव शक्ति में विलीन हो जाएंगे और मैं भी जगत की आत्मा सूर्य के आगोश में जाकर खो जाऊंगा। बसंत ऋतु के बाद फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव ओर पार्वती की शादी हो रहीं हैं और अमावस्या को शिव के खप्पर में नाना प्रकार के भोजन भरे जा रहे।

संत जन कहते हैं कि हे मानव शिव तो सर्वत्र बसे हैं। हर सजीव व हर निर्जीव में सदा शिव का निवास रहता है। शरीरधारी में जो तेज है वही शिव है और शरीर के गुणों से बनने वाला मन माया है यहीं माया साक्षात हर जीवो मे पार्वती जी के रूप में विद्यमान है। मन रूपी माया शरीर को संसार के भोगों में लगा देतीं हैं। आत्मा चूंकि ब्रह्म रूपी शिव है और वो मन की ओर आकर्षित होकर उसे शरीर के भोगो से हटाने के लिए ‘शब्द ‘ ब्रह्म करतीं हैं ओर माया मे विलीन हो जातीं हैं। यही “शब्द ब्रह्म ” है अर्थात शिव माया से आकर्षित हो जाते हैं। शिव ओर माया का मिलन ही शिव की महारात्रि बन जातीं हैं और महा शिवरात्रि कहलाती है।

शरीर जब माया के कारण खत्म होंने लगता है तब मन शरीर को छोड़ ब्रह्म रूपी शिव की ओर आकर्षित होती हैं तो ” शब्द नाद “की उत्पत्ति होती हैं और माया पूर्ण प्रकाशित हो कर नव रात्रि बन जाती है और यही काल शरीर के भोगों को जला कर शिव का तीसरा नेत्र बन होली मनाता है और नव रात्रि एक महा नवरात्री बन ज़ाती है।

इसलिए हे मानव तू शिव की महारात्रि बन और भोगो को होली की काल रात्रि में जला कर उस आत्मा के प्रकाश में स्वयं मन बन कर नवरात्रि बना। यही बेला शिव शक्ति के मिलन की शादी है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

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