Breaking News
Home / breaking / मैं आग हूं, जलाती हूं, नाम और जाति नहीं पूछती

मैं आग हूं, जलाती हूं, नाम और जाति नहीं पूछती

 

न्यूज नजर : विभिन्नता में एकता की एक सुन्दर प्रस्तुति करती हुई आग यह संदेश देती है कि हे मानव कि मैं जलाने में किसी से भी कोई परहेज नहीं करती। चाहे चंदन की लकड़ियां हों बबूल के कांटे। मेरा धर्म केवल जलाना है। इसलिए व्यक्ति किसी भी धर्म, भाषा, लिंग, जाति, वर्ग और समाज का हो इससे मेरा कोई सरोकार नहीं है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

मैं कुदरत की रचना हूं। मानव की बनाई संस्कृति नहीं। मानव अपनी संस्कृति केवल अपने हितों के लिए ही बनाता है और मानव सभ्यता के टुकड़े कर डालता है। उसी संस्कृति में जन्म को निर्धारित कर उसकी जाति व कुल तय कर दिए जाते हैं फिर भी मैं सभी को जलाने में उसका नाम नहीं पूछतीं, उसे जलाकर राख बना देती हूं।

मानव सभ्यता ने ही मानव को पहली बार जन्म दिया है, न कि किसी संस्कृति ने। संस्कृति का जन्म तो जमीनी हकीकत में एक आविष्कार की कहानी की तरह से है। जब शनै: शनै: मानव सभ्यता में वृद्धि होने लगी और बलवान व्यक्ति अपने हितों को साधने के लिए जागरूक होने लगा बस तब से ही जाति धर्म निर्धारित होने लगे।

एक गांव के सरोवर किनारे एक श्मशान था। वहां पर एक फकीर ऊंचे स्वर से गा रहा था….

तेरा ठिकाना तो मसान में है 
माटी के पुतले तुझे 
इतना गुमान है

इतने में वहां एक शवयात्रा आईं और उस शमशान घाट के पास आकर रूक गई। उस शवयात्रा में से कोई बोला अरे आगे बढो यह श्मशान दूसरों का है, वह शवयात्रा आगे बढ गई। यह देख कर फकीर हेरान हो गया और आसमान की तरफ देख कर हंसने लगा ओर कहने लगा….

अजब तेरी कारीगरी रे करतार

जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा जीवन कहलाती है। जमीनी स्तर पर इस यात्रा की लम्बाई ज्यादा नहीं होती, क्योकि शरीर विधाता की सुंदर रचना है तो वह एक व्याधियों का घर भी है जो रोगों को पालता है। शरीर मृत घोषित होते ही वह लाश कहलाती है और उसका ठिकाना श्मशान ही होता है।

श्मशान की आग केवल जलाना ही जानती है। वह यह परहेज नहीं करती कि ये जलने वाला कौन, किस धर्म, जाति, समाज, कुनबे या गोत्र का है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, व्यक्ति अपने स्वार्थो की पूर्ति में बाधा उत्पन्न करने वाले का विरोधी बन जाता है तथा अपनी ही बनाई हुई संस्कृति को छोड वह हीन व्यवहार करने पर ऊतारू हो जाता है। इसलिए हे मानव, विभिन्नता में एकता की संस्कृति को तू अलग-अलग रंगों में मत रंग। विभिन्नता में एकता हर रूपों में एक ही होती है।

Check Also

दोस्त की गर्लफ्रेंड से बनाए अवैध सम्बन्ध, अधजली लाश ने खुद उगले राज

कोंडागांव। जिले में एक दोस्त ने अपने ही दोस्त की हत्या कर दी। बताया जा …