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श्रद्धा के श्राद्ध व नवरात्रा को तृप्त करती शरद ऋतु 

 

 
न्यूज नजर :   सायन मत में सूर्य की कन्या संक्रांति 23 अगस्त से शुरू हो जाती है अर्थात सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर लेता है। सायन सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के साथ ही शरद ऋतु प्रारम्भ हो जाती है जो 23 अक्टूबर तक रहती है। आश्विन मास भी पूरा इस शरद ऋतु में आता है।
भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक हिन्दू धर्म की मान्यताओं में इसे श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। इस श्राद्ध पक्ष में मृत आत्मा की शांति के लिए तर्पण पिंड दान अनुष्ठान हवन तथा उनके निमित्त भोजन करवाये जाने की प्रथा हिन्दू धर्म में है। अपने कुल नियम अपनी मान्यताओं और शास्त्रीय मान्यताओ के अनुसार श्राद्ध निकाले जाते हैं और मृत आत्मा को तृप्त करने के हर संभव प्रयास किये जाते हैं। श्राद्ध का मूल उद्देश्य केवल अपने कुल परिवार के मृत व्यक्ति की याद को बनाये रखे

और उस अजर अमर अविनाशी आत्मा को तृप्ति मिले। यह सभी धार्मिक मान्यताओं में है।

      आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक नवरात्रा मनाया जाता है। शरद ऋतु में आने के कारण यह शारदीय नवरात्रा कहलाते हैं। इस नवरात्रा में अदृश्य प्रकृति शक्ति को देवी का रूप मान कर उनके सम्मान में व्रत अनुष्ठान हवन आदि किये तथा है पूर्ण उत्साह और नाच गाने के साथ। शक्ति के नाम से ही सामर्थ्य सिद्ध हो जाता है जो विकट से विकट और दुर्गम कार्यो को करके दुर्गा कहीं जातीं हैं। पूरे नव दिन यह नवरात्रा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।इस नवरात्रा में हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार नवीन जल घट की स्थापना की ज़ाती है तथा घट के पास मिट्टी में गेहूं जौ बोये जाते हैं। इन्हें रोज जल से सीचा जाता है और नवे दिन इन गेहूं जो की जो बालियां मिट्टी से अंकुरित हो कर निकली हैं उसे नवीन समृद्धि मान कर कुछ बालिया देवी शक्ति के अर्पण कर दी जाती हैं तथा शेष को विसर्जित कर दी जाती हैं। 

           श्राद्ध और नवरात्रा दोनों में ही अदृश्य शक्ति को धार्मिक मान्यताओं में पूजा जाता है और इस कर्म को करने वाले पूर्ण श्रद्धा आस्था व विश्वास से सरोबार हो कर अपने स्वंय की ऊर्जा को भी बढा लेता है और अपने आप को भी इस सेवा उपासना से तृप्त कर लेते हैं।इससे व्यक्ति अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बढा कर अमृत पान करने जैसा हो जाता है। हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता श्राद्ध का महत्व स्थापित कर देती है तो प्रकृति को सर्वोपरि मान कर अदृश्य शक्ति की पूजा उपासना किये जाने वाले सिद्धान्त को भी स्थापित कर देतीहैं। हालांकि दोनों ही मान्यताएं विज्ञान की सोच से बाहर है लेकिन विज्ञान भी प्रकृति से जीत नहीं पाया तो मृत शरीर को जीवित नहीं कर पाया।

    श्राद्ध और नवरात्रा दोनों ही शरद ऋतु में आते हैं। शरद ऋतु को इन सब मानवीय सिद्धांत और धर्म तथा विज्ञान से कोई लेना देना नहीं होता है और इस कारण वो प्रकृति के शाश्वत नियमों के अनुसार अपने दायित्वों का निर्वहन करती हैं। ठंडी सी मधुर मिठास देती हुई यह शरद ऋतु गर्मी को रोक देती हैं और वातावरण को ठंडा और शरीर को आनंद दायक देने जैसा बना देती हैं। इससे हर व्यक्ति की कार्य क्षमता बढती है और सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है और ऐसा लगता है कि यह शरद ऋतु ओस की बूंदो के रूप में अमृत की वर्षा कर रही है और संसार का हर जीव व जगत अमृत का पान कर रहा है।

भौतिक जगत और आध्यामिक जगत दोनो में एक ठंडी सी रूहानियत छा जाती है। भूतकाल की स्मृतियों को ताजा कर उन्हे तृप्त कर देती है तो वर्तमान को उत्साहित बना कर उसमे नवीन ऊर्जा का संचार कर देतीं हैं और जो गुप्त शक्ति हमे नजर नहीं आतीं उनके अमृत तुल्य खाद्यान्नों वनस्पति ओर ओषधियों को यह अमृत रूपी जल का छिडकाव कर उनके गुणों को बढा देती हैं।

      संतजन कहते हैं कि हे मानव यह शरद ऋतु अपनी निर्मलता शीतलता और मिठास से संसार के सभी जीव व निर्जीव को एक ऐसे वातावरण में ले जाती हैं जहां सजीवों में मन का उत्साह बढ जाता है और निर्जीवों में भी निखार आ जाता हैं। आकाश से पड़ने वाली हल्की वर्षा और अमृत रूपी ओस की बूंदे ना केवल खाद्यान्न उत्पादनों को बल्कि समस्त जीव व जगत की बुद्धि को शीतलता का अमृत पान कराती है। 

       इसलिए हे मानव शरद ऋतु को यह मतलब नहीं होता है कि कोई श्राद्ध या नवरात्रा माने। वह तो खुद मृत आत्माओ को,  जीवित आत्माओ को तथा गुप्त शक्तियो को अपने अमृत का पान अपने ओस रूपी जल से करा कर उन्हे तृप्त कर देती है और ऐसा लगता है कि शरद ऋतु मृत आत्माओ के लिये तर्पण कर रही है,  जीवित आत्माओ को शीतलता प्रदान कर उनकी ऊर्जा को बढा रही है और गुप्त शक्ति के बीजों को अंकुरित कर फल और खाद्यान्न वाले ज्वारे को अपने गुणों से भर कर उनके मूल गुणो में चार चाँद लगा रही हैं।

इसलिए हे, मानव तू इस मस्तानी और रूहानी ऋतु का आनंद उठा और अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा।

 

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