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गिद्ध की भेंट चढ़ती बच्ची को बचाने की बजाय फोटो लेने वाले कार्टर से तुलना

नई दिल्ली। देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी श्रमिकों की कथित दुर्दशा पर उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार के दूसरे सबसे बड़े विधि अधिकारी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में जनहित और हस्तक्षेप याचिका दायर करने वालों को आरामतलबी बुद्धिजीवी और ‘क़यामत के पैगम्बर’ की संज्ञा तो दी ही, इनकी तुलना दक्षिण अफ्रीका के फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर से भी की जिसने सूडान में दुर्भिक्ष की शिकार एक बच्ची को गिद्ध से बचाने के बजाय तस्वीरें उतारना ज्यादा उचित समझा था।

मेहता ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का विस्तृत लेखाजोखा दिया। इस दौरान उन्होंने नकारात्मकता फैलाने वालों के खिलाफ तंज भी कसे और उन्हें ‘क़यामत के पैगम्बर’ करार दिया। उन्होंने कहा कि ये आरामतलबी बुद्धिजीवी वातानुकूलित कमरों में बैठकर अफवाह और नकारात्मकता फैलाने का ही काम करते हैं। इनके मन में राष्ट्र भक्ति नाम की कोई चीज नहीं है। करोड़ों कमाने वाले ये तथाकथित मसीहा प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं। लेकिन उनके कल्याण के लिए आगे नहीं आते।

सॉलिसिटर जनरल ने इसी क्रम में सूडान में 1993 में आए दुर्भिक्ष का जिक्र किया, जिसमे एक गिद्ध भूख से तड़पती बच्ची के मरने का इंतज़ार कर रहा है और फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर उस लड़की को बचाने की बजाय एक्सक्लूसिव तस्वीरें लेने में जुटा हुआ था।

मेहता ने कहा कि वह तस्वीर अमरीका से प्रकाशित समाचार पत्र में छपी और कार्टर को पुलित्जर पुरस्कार प्रदान किया गया, लेकिन बाद में उस बच्ची को ना बचा पाने के अवसाद से वह उबर नहीं पाया और उसने तीन महीने बाद आत्महत्या कर ली थी।

मेहता ने कहा कि जब एक पत्रकार ने केविन कार्टर से पूछा था कि उस बच्ची का क्या हुआ? केविन कार्टर ने कहा था- उसे नहीं पता कि उस बच्चे का क्या हुआ? उसे घर जल्दी लौटना था, इसलिए वह चला आया था। रिपोर्टर ने जब पूछा कि जब कार्टर फोटो खींच रहे थे वहां कितने गिद्घ थे? कार्टर ने जब जवाब में कहा -एक।

तब रिपोर्टर ने कहा था कि एक नहीं, वहां दो गिद्ध थे, एक बच्चे के मरने का इंतज़ार कर रहा था और दूसरे के हाथ में कैमरा था। केविन कार्टर की कहानी सुनाते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा,“माई लॉर्ड, ये जो याचिकाकर्ता हैं, उनसे पूछिये ये कौन हैं? क्या उन्होंने इस त्रासदी के दौरान खुद एक पैसा भी खर्च किया है? आम लोग सड़कों पर प्रवासी मजदूरों के लिए खाने पीने की व्यवस्था कर रहे हैं। इन याचिकाकर्ताओं में से कितने हैं जो अपने वातानुकूलित कमरों और गाड़ियों से बाहर निकले हैं?

उन्होंने कहा कि इनकी हालत पर गिद्ध और फोटोग्राफर की कहानी पूरी तरह सही बैठती है। केवल सरकार की आलोचना करने, साक्षात्कार देने, सोशल मीडिया पर लिख देने के अलावा इनका योगदान क्या है?

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