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आना ही पड़ा विट्ठल जी को

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नामदेव जब 5 वर्ष के थे तो एक दिन दामाशेटी गांव में उनकी मां ने उन्हें भगवान को भोगमें चढ़ाने के लिए दूध दिया और कहा कि वह इसे विठोबा को चढ़ा आए। नामदेव सीधे मंदिर में गए और मूर्ति के आगे दूध रखकर कहा कि, लो इसे पी लो।

मंदिर में मौजूद लोगों को यह देख हंसी आ गई। उन्होंने बालक नामदेव से कहा कि यह मूर्ति है, दूध पिएगी कैसे ? परंतु बालक नामदेव को इससे कोई मतलब नहीं था कि यह मूर्ति है।

उनकी नजर में तो वे भगवान विट्ठल ही थे और उन्हें दूध पिलाना था। इसलिए वे भगवान के आगे जिद पकड़कर बैठ गए कि दूध तो पीना ही पड़ेगा। बालहठ समझकर सब लोग अपने-अपने घर चले गए। मंदिर में कोई नहीं था।

बालक नामदेव निरंतर रोए जा रहे थे और कह रहे थे- विठोबा यह दूध पी लो नहीं तो मैं यहीं, इसी मंदिर में रो-रो कर प्राण दे दूंगा। बालक का भोला भाव देखकर विठोबा पिघल गए। वे साक्षात मानव रूप में प्रकट हुए और स्वयं दूध पीकर नामदेव को भी पिलाया। तब से नामदेव को विट्ठल नाम की धुन लग गई। वे दिन-रात विट्ठल-विट्ठल की रट लगाए रहे।

                                                                                   -नामदेव न्यूज

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