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किसी भी पल धरती से टकरा सकते हैं विशाल पत्थर

नई दिल्ली. अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए एक विचित्र पहेली है. जिसके बारे में वो खोजबीन करते रहते हैं और आम इंसानों को चौंकाते रहते हैं. कभी आसमान में उड़ती कोई विचित्र चीज दिख जाती है तो उसे हम एलियन समझ लेते हैं तो कभी कोई उल्का पिंड (Invisible asteroids to fall on Earth) धरती के करीब से गुजरता है तो हम हैरान हो जाते हैं. अब एक हैरान करने वाली घटना के बारे में वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है. जो अगर सच साबित हो गई तो धरती खतरे में पड़ सकती है.

वैज्ञानिकों के अनुसार जापान के हिरोशिमा में गिरे बम के आकार के कई पत्थर धरती से किसी भी पल टकरा सकते हैं. तुलना के लिए आपको बता दें कि हिरोशिमा पर गिरे बम, लिटिल बॉय का आकार 28 इंच डायमीटर का था जबकि उसका वजन 4400 किलो था.

 

इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर इतने बड़े आकार के ढेरों पत्थर, जिनकी संख्या के बारे में वैज्ञानिकों को अंदाजा नहीं है, धरती पर गिरते हैं तो क्या असर होगा. वैज्ञानिकों को फिलहाल धरती पर गिरने वाले इन उल्कापिंडों (Asteroid size of Hiroshima bomb) की ज्यादा जानकारी नहीं है. इनका नाम अदृश्य उल्का पिंड रखा गया है क्योंकि ये सूर्य की ओर से आते हैं और सूर्य की चमक में अदृश्य हो जाते हैं.

रूस में हो चुकी है पत्थर गिरने की ऐसी घटना

डेली स्टार न्यूज वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार साल 2013 में रूसी एयर स्पेस में 19 मीटर चौड़ा Chelyabinsk उल्का पिंड भी आ गया था जिसके गिरने से 1600 लोग घायल हो गए थे, हालांकि, ये सारे लोग अप्रत्यक्ष प्रभाव से घायल हुए थे. अधिकतर लोग घर में टूट कांच से घायल हुए जो उल्कापिंड के झटके से चकना चूर हो गए थे. ये पत्थर हिरोशिमा पर गिरे बम की तुलना में 35 गुना बड़ा था. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस उल्का पिंड का पता इसलिए नहीं लगा क्योंकि सूरज की चमक में ये छुप गया था.

वैज्ञानिकों के अनुसार अब ऐसी ही घटना दोबारा हो सकती है, बस फर्क इतना है कि ऊपर बताई घटना में एक पत्थर गिरा था, और इस घटना में अज्ञात संख्या में ढेरों पत्थर आसमान से धरती पर गिर सकते हैं.

 

रूस की घटना से सतर्क होकर नया सिस्टम बना रहे हैं जिसका नाम नियर अर्थ ऑब्जेक्ट मिशन है. ये इन्फ्रारेड की मदद से उल्का पिंड के गिरने के बारे में बता देगा जिससे कुछ वक्त पहले ही लोगों को सचेत किया जा सकता है. इस सिस्टम का नाम नियोमिर है और ये इस दशक के अंत तक बनकर तैयार होगा. ये सूर्य की तरफ से धरती पर आने वाली चीजों को मॉनिटर करेगा. ये सिस्टम धरती और सूर्य के बीच में रहेगा और उल्कापिंडों का पता लगाएगा.

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