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अब लगा वाकई सही था यह फैसला!

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कोशिश चंद महीनों की लेकिन टीस थी कई सालों की। पत्रकारिता करते हुए  20-22 साल हो चुके हैं। दैनिक भास्कर राजस्थान पत्रिका दैनिक नवज्योति जैसे बड़े अखबारों में काम किया। पत्रिका में तो एक दशक से ज्यादा वक्त तक डेस्क इंचार्ज रहा। निष्पक्ष तरीके से हर छोटे बड़े समाज को अपनी कलम से सम्मान दिया।

मगर अपने समाज के बारे में सोचता तो पाता कि इस समाज के लिए शायद बड़े अखबार वालों के पास स्याही कम है।
हर साल महज दो-तीन ही ऐसे मौके आते हैं जब नामदेव समाज हर बड़े अखबार से उम्मीद करता है कि उसके कार्यक्रमों को दूसरे बड़े समाजों की तरह ही कवरेज दिया जाए। इसके लिए रिपोर्टर्स फोटोग्रफेर्स की मान मनोव्वल की जाती है। सम्पादकों की देहरी धोकी जाती है मगर जब अगले दिन अखबार में अपनी खबर ढूंढी जाती है तो धोखे का अहसास होता है।

पूरे साल अखबार खरीदने वाले नामदेव बन्धु अपनी ही खबर अखबार में नहीं पाकर सिवाय झेंपने के कुछ नहीं कर पाते। मासूमियत इतनी कि अगर चंद लाइनों की खबर छप भी गयी तो यूं ख़ुशी होती है मानो सरकारी गजट में नाम दर्ज हो गया। फिर उस अखबार की कटिंग काट कर नोट से भी ज्यादा सम्भाल कर रखते हैं। फेसबुक और व्हाट्स एप पर डालते हैं। कुल मिलाकर अपनी खबर छपवाने के लिए तरसते हैं।
चूंकि मैं लम्बे समय से मीडिया से जूडा हूँ इसलिए ये हकीकत करीब से देखी है। मैं जिस भी अखबार में रहा जितना हो सका नामदेव समाज को उसके हिस्से का स्पेस दिलाया मगर दूसरे अखबारों में कवरेज नहीं पाकर दुःख होता। क्या हमारा समाज इस लायक भी नहीं कि उसे साल में दो-एक बार भी कवरेज मिल सके। दूसरे बड़े समाजों के फंक्शन में बकायदा रिपोर्टर फोटोग्राफर की ड्यूटी लगती है जबकि नामदेव समाज का तैयार प्रेस नोट आने के बाद भी तवज्जो नहीं दी जाती। इस पीड़ा को बरसों से महसूस किया है।
इसी बीच प्रिंट मीडिया के साथ वेब मीडिया समझने का अवसर मिला । राजस्थान पत्रिका के हैड क्वाटर में वेबसाइट सम्भालने का जिम्मा मिला। रात-रात भर जागकर कंटेंट्स तैयार किये।
साथियों और कुछ समाज बंधुओं से चर्चा हुई कि समाज के लिए क्या किया जा सकता है
नतीजा है ‘नामदेव न्यूज़ डॉट कॉम’ वेबसाइट जो पूरी तरह समाज को समर्पित है।
इस बार फिर उदाहरण  सामने हैं। बसंत पंचमी पर हर गाँव कस्बे और शहर में नामदेव समाज ने सामाजिक उत्सव मनाया मगर अगले दिन का कोई सा भी अखबार उठाकर देख लीजिये। क्या आप-हम संतुष्ट हैं कवरेज से। बात अजमेर की करें तो यहाँ केवल दैनिक नवज्योति ने कलर फोटो के साथ तीन कॉलम समाचार छापा। इसके लिए प्रधान सम्पादक श्री दीनबन्धु चौधरी जी का आभार। एक अन्य अखबार ने दूसरी संस्थाओं के समाचार में नामदेव समाज का समाचार जोड़ दिया जो आसानी से नजर नहीं आता। इनके अलावा एक बड़े अखबार ने तो एक लाइन भी छापना मुनासिब नहीं समझा। यही स्थिति दूसरी जगहों की रही। कहीं सार समाचार के बीच नामदेव समाज की खबर लगा दी। कहीं खबर ही नहीं छपी गई।
मन फिर दुखी हुआ मगर तसल्ली हुई कि नामदेव समाज का मेगा कवरेज देने के लिए हम खुद सक्षम हैं। हमने ऐसा ही किया और कुछ ही घंटों में मेगा कवरेज विश्वभर में घर घर तक पहुंचा दिया नामदेव न्यूज़ डॉट कॉम के माध्यम से।
बरसों तक जो टीस मन में थी वो कुछ नया करने की प्रेरणा देने के लिए काफी थी।  हमें जिस भी माध्यम से बसंत पंचमी कार्यक्रम के फोटो आदि मिले हमने समाचार बनाकर प्रकाशित कर दिया। कब तक हम वहां रिरियाते रहेंगे जहाँ हमें सम्मान नहीं मिलता? हमें अपने ही माध्यम को इतना प्रचलन में लाना है कि किसी दूसरे के यहाँ अनुनय विनय करने की जरूरत ही नहीं रहे।

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