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आरोग्य और धन पर विजय की त्रियोदशी

न्यूज नजर : पहला सुख निरोगी काया और दूसरा सुख घर में हो माया अर्थात सुखों में पहला सुख होता है निरोगी काया। काया से अर्थ शरीर से है। संसार में सभी सुखो की प्राप्ति के लिए यह जरूरी है कि मानव का शरीर निरोगी होना चाहिए क्यो कि स्वस्थ शरीर ही हर सुखो को भोग सकता है। दूसरा सुख होता है घर में माया अर्थात धन होना चाहिए क्यो कि धन के अभाव में शरीर किसी भी सुखो को प्राप्त नहीं कर सकता है। इसी के कारण आरोग्य ओर धन पर विजय पाने का पर्व धन तेरस या धन त्रियोदशी कहलाती है।

 

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

आरोग्य पर विजय पाने के लिए पौष्टिक आहार ओर अमृत रूपी भोजन की आवश्यकता होतीं हैं ताकि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढे और रोगों को उत्पन्न ही नहीं होने दे। इसके लिए मोसम और ऋतुओं के अनुसार ही फल साग सब्जी ओर खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। जमीन मे बोये हुए बीजो का मंथन कर धरती उन्हे अंकुरित करतीं हैं और फसलों का कलश बना कर उगा देतीं हैं। इस ऋतु की फसले शरद ऋतु के चन्द्रमा का ओस रूपी अमृत पान किये हुए रहती है जिसमे आरोग्य देने की क्षमता बढ जाती है ओर आरोग्य के देवता धनवंतरि बन जाती हैं।

बरसात की ऋतु के हर क्षेत्र में काम धंधे ओर व्यापार बढ़ जाता है और कृषि उत्पादों से आवश्यकता की पूर्ति व धन की प्राप्ति हो जाती है।अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि ही होतीं हैं। इस कारण कृषि उत्पादों के बाजार में आते ही बाजार मे व्यापार बढ़ जाता है तथा
निर्माणी उद्योग धंधे व सभी धंधों में व्यक्ति को रोजगार मिल जाता है।सभी के घरों मे लक्ष्मी पहुँच जातीं हैं।
शरद ऋतु के बाद आने वाली यह कार्तिक मास की त्रियोदशी या तेरस जया तिथि होती है और इसी मास में यश ओर प्रतिष्ठा का कारक सूर्य तथा यश व निर्मलता देने चन्द्र दोनों ही धन कुबेर व लक्ष्मी समृद्धि के कारक शुक्र ग्रह की तुला राशि में दीपावली के दिन होते हैं और धनतेरस को चन्द्र कन्या राशि में गतिशील रहता है। कन्या राशि के स्वामी बुध ग्रह होते हैं जो गणना व हिसाब-किताब आर्थिक मामलों का कारक होता है।

इस राशि मे भ्रमण करता चन्द्रमा यश ओर शान शोकत की वस्तुओ को खरीदने का मन बनाता है और बुध ग्रह के धर में धन कुबेर की तरह व्यवहार करता हुआ धन तेरस मनाता है।
हर वर्ष केवल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी ओर अमावस्या को ही सूर्य व चंद्रमा की यह स्थिति तुला राशि में होती है इस कारण हर महिने में सूर्य ओर चन्द्र के मिलन की अमावस्या में दीपावली नहीं होती।
संत जन कहतें है कि हे मानव आत्मा रूपी सूर्य ओर चन्द्र रूपी मन का माया रूपी शुक्र के घर में मिलन से माया की प्रधानता बढ जाती है ओर स्त्री शक्ति के रूप में महालक्ष्मी की पूजा करने के लिए दुख ओर दरिद्रता रूपी शनि के तेल का दीपक को बुराई रूपी मंगल जला देता है। बाधा उत्पन्न करने वाला राहू व केतु घर के बाहर द्वारपाल बन रक्षा करने लग जाते हैं और अनुकूल वातावरण में वृहस्पति ग्रह शिक्षा संतान दाम्पत्य व आर्थिक रिद्धि सिद्धि के दाता बन विकास को गति प्रदान करते हैं।
नव ग्रहो का यह अनुकूल सतुलन भाईचारा बढा कर सबको राम राम करता हुआ ऋतु की साग सब्जी ओर खाद्य पदार्थों का अन्न कूट बना कर जन साधारण को सुलभ कराता हुआ आरोग्य को बढाता है।
इसलिए हे मानव आकाश के ग्रहो की सुन्दर संरचना के रूप की भांति तू अपनी योजना को अंजाम दे ओर मन रूपी दिये मे घृणा ओर नफ़रत रूपी तेल ओर अंहकार रूपी बाती को जला कर मन के अंधेरो को रोशन कर तथा आत्मा रूपी सत्य से मिलन कर।