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कजली यानी सातुड़ी तीज आज : जानिए सम्पूर्ण जानकारी

 

 

न्यूज नजर : कजली यानी सातुड़ी तीज के दिन सुहागिनों और कन्याओं का महत्वपूर्ण व्रत दिन माना गया है। भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाने वाली तीज को कजली या कजरी तीज के नाम से जाना जाता है। इस त्योहार पर सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं।

ऐसी मान्यता है कि महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। महिलाओं भगवान शिव और माता पार्वती से सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना करती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि अगर किसी लड़की की शादी में कोई बाधा आ रही है तो इस व्रत को जरूर रखें। काफी लाभकारी होगा।

माता गौरी और भगवान शिव की पूजा

इस दिन महिलाएं स्नान के बाद भगवान शिव और माता गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं, या फिर बाजार से लाई मूर्ति का पूजा में उपयोग करती हैं। व्रती महिलाएं माता गौरी और भगवान शिव की मूर्ति को एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर स्थापित करती हैं। इसके पश्चात वे शिव-गौरी का विधि विधान से पूजन करती हैं, जिसमें वह माता गौरी को सुहाग के 16 सामग्री अर्पित करती हैं, वहीं भगवान शिव को बेल पत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा, भांग आदि चढ़ाती हैं। फिर धूप और दीप आदि जलाकर आरती करती हैं और शिव-गौरी की कथा सुनती हैं।

चंद्रोदय व गाय की पूजा के बाद खोलें व्रत

इस दिन गाय की पूजा की जाती है। गाय को रोटी व गुड़ चना खिलाकर महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। यह व्रत काफी हद तक करवाचौथ की तरह होता है। इसमें पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम को चंद्रोदय के बाद व्रत खोला जाता है। कजली तीज के दिन जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ा जाता है।

बहुत सी जगहों पर महिलाएं घर में झूला डालकर उसका आनंद लेती हैं। इस दिन औरतें अपनी सहेलियों के साथ एक जगह एकत्र होती हैं और पूरे दिन कजली के गीत गाते हुए नृत्य करती हैं।

कजली तीज नाम क्यों पड़ा?

पुराणों के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था। इस जगह का राजा दादुरै था। इस जगह में रहने वाले लोग अपने स्थान कजली के नाम पर गीत गाते थे जिससे उनकी इस जगह का नाम चारों और फैले और सब इसे जाने। कुछ समय बाद राजा की म्रत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई, जिससे वहां के लोग बहुत दुखी हुए और इसके बाद से कजली के गाने पति–पत्नी के जनम–जनम के साथ के लिए गाये जाने लगे।

तीज से जुडी एक और कथा

माता पार्वती शिव से शादी करना चाहती थी लेकिन शिव ने उनके सामने शर्त रख दी व बोले की अपनी भक्ति और प्यार को सिद्ध कर के दिखाओ। तब पार्वती ने 108 साल तक कठिन तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया। शिव ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज को उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था। इसलिए इसे कजरी ती ज कहते हैं मान्यता है कि बड़ी तीज को सभी देवी देवता शिव पार्वती की पूजा करते हैं।

कजरी तीज से जुडी कहानी

एक साहूकार था, उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पांगला (पांव से अपाहिज) था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहां ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी।

भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए सातु बनाए। छोटी बहू गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला कि मुझे वेश्या के यहां छोड़ कर आ।

हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गई, लेकिन पति उस दिन बोलना भूल गया कि तू जा। वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा। कुछ देर बाद नदी आवाज़ से आवाज़ आई कि आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय।

आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किए और चारों दिशाओं में फेंक दिए। उधर, तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहां से चली गई। पति ने सारा धन लेकर घर आकर पत्नी को आवाज़ दी कि दरवाज़ा खोल। उसकी पत्नी ने कहा मैं दरवाज़ा नहीं खोलूंगी। उसने कहा कि अब में वापस कभी नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु पासेगें। लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे।

पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा।

सुबह जब जेठानी के यहां काम करने नहीं गई तो बच्चे बुलाने आए, काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा-अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी।

बच्चो ने जाकर मां को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की कृपा हुई है। वह नए–नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए। हे तीज माता!!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना, सब के दुःख दूर करना। तीज माता की …जय!!!