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चांद के पार चलो …

काश आकाश में चांद ना होता तो धरती के चांद की उपाधियाँ ही बदल जातीं। दूज का चांद, करवा चौथ का चांद, चौदहवीं का चांद और पूर्णिमा का चांद। दूज का चांद नव उत्कर्ष का आरंभ करता है तो

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

करवा चौथ का चांद सुहागिन के सुहाग को अमर रखने का संदेश देता है। चौदहवीं का चांद एक बेहद खूबसूरती को वयां करता है तो पूर्णिमा का चांद जीवन की पूर्णता को बताता है और कहता है कि हे मानव मेरा पूर्ण स्वरूप ही विकास का चरमोत्कर्ष है और यहीं पर मुझे भारी चुनोतियों का ही सामना करना पड़ता है और मै संघर्ष की राह पर निकल कर मेरे क़दम उस सत्य की ओर बढ़ाता हू जहां अहंकार की आहुति शमशान की चिता में देकर उसमें खो जाता हू और एक नये विकास ओर विचार की कहानी को लिखता हू , मेरा यह स्वरूप ही अमावस्या कहलाती हैं ।


इस अमावस्या में , इतना चकाचौंध हो जाता हूँ कि वहां से मुझे कोई देख नही सकता और दुनिया में मुझे ग़ायब मान लिया जाता है और अमावस्या की काली रात कह दिया जाता है। यह मेरा अज्ञातवास ही मुझे चिंतन कराता है और उस चितंन को लेकर फिरमेरे नये विचारों को लेकर हर माह ओर ऋतुओं के साथ विचरण कर अलग-अलग तरह की एक अनोखी शख्सियत के साथ जाना जाता हूँ।
इतना ही नहीं जब में पूर्णता में रहता हूं तो गर्व से पूर्णिमा कहलाता हूं। यहां पर भी चुनौती मिलती है और मैं बलवान होने के बाद भी अपनें अस्तित्व को बचाने में सफल नहीं होता हूँ ओर मुझ पर सूर्य से आनें वाले प्रकाश को जब धरती रोक कर कुछ समय के लिए मुझे गुम कर देती हैं और मुझे मेरी हैसियत का भान कराती है और इसे मैं गुरू मंत्र की तरह जपता हूँ तो मुझे ज्ञान की एक अनुभूति होती है और कहतीं हैं कि हे मानव तू पूर्णता प्राप्त करने के बाद भी गुमान मत करना क्यो की पूर्ण चंद्रमा को ही ग्रहण लगता है।
हें मानव में कैसे बना ये तो मैं भी नही बता सकता हूं, तो दूसरे मेरे बारे में केवल कयास ही लगा सकते हैं। कोई ये भी कहता है कि मै दूसरें लोक में रहने वाले लोगों का स्पेशयान हूंऔर मुझमे ऐरियल निवास करते हैं ओर कोई कहता है कि मै धरती का ही टुकडा हूं।
हे मानव मैं जो भी हूं लेकिन मैं प्रेमियों के लिए कुदरत की सोगात हूं वो चाहे धर्म प्रेमी हो या मानव प्रेमी हो। मै जो भी हु फिर भी तुम्हारा हूं। भले ही तुम्हारी पृथ्वी से, मै दूर हूं फिर भी धरती के प्रेमवश सदियों से इसके चक्कर लगा रहा हूं। भले ही हमारा मिलन ना हो। हम दोनों अमर प्रेम की कहानी है ओर विधि की निशानी है। भले ही चौदहवीं का चांद बनूं या ग्रहण लगा चन्द्रमा बनू तो भी मैं सदा तुम्हारा हूं ।
इसलिए हे मानव तू अपने कर्म के उस मार्ग की ओर बढ़ भले ही तेरे राह मे कांटे लगे हो तू चांद की पूर्णता के बाद भी ग्रहण का शिकार होगा लेकिन तेरे कदम कुछ नया सीख जाएंगे और तू फिर बेमिसाल चौदहवीं का चांद बन जाएगा।