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देव, शयन की ओर जा रहे हैं. .

 
 
  न्यूज नजर : अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव जिनका आधार श्रद्धा और विश्वास है जिनको साकार या निराकार रूप में माना जाता है और धार्मिक मान्यताएं उसी को इस जगत की सत्ता मानती हैं। जो सर्व शक्तिमान है और कुछ भी करना उसके लिए संभव होता है। उनके शयन की ओर जाने का समय आ गया है।
भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी तक यह देव शयन काल माना जाता है और हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है। चार मास तक देवों के शयन काल में जगत की व्यवस्था कैसे चलती है इस विषय की ओर हम देखते हैं तो पाते हैं कि ज्ञान, योग, कर्म योग और भक्ति योग में रम रहे सभी लोग अपनी भूमिका का निर्वाह कर देवों की शक्ति को जागृत किए हुए रहते हैं और सारी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के प्रयास करते हैं।

            
 इन चारों मास में सर्वप्रथम जगत की विनाशकारी शक्ति को नियंत्रित करने के लिए सावन मास में शिव की पूजा उपासना पूरे मास तक की जाती है तो भाद्रपद मास में जगत के पालन करने वाली शक्ति के अवतार के रूप में आराधना और उत्सव मनाये जाते हैं।
आसोज मास में कृष्ण पक्ष जो शनैः शनैः खो कर पूर्ण अंधेरों में चले जाते हैं, उनकी याद में हम मृत शक्ति की याद में दान पुण्य तर्पण और श्राद्ध करते हैं। उस विनाशकारी शक्ति पालन हारी शक्ति और आत्मा रूपी मानव शरीर जो मृत हो चुका है उनकी शक्ति को पूज कर मानव अपने आपको सुरक्षित महसूस करता हुआ व्यक्ति सामूहिकता की शक्ति में प्रवेश करता हुआ नवरात्रा मनाता है और प्रकट रूप से शक्ति को संचित करता है। कार्तिक मास में सामूहिकता के सहयोग से लक्ष्मी सर्वत्र खुशियाँ मनाते हुए सबको आनंदित कर देती है। इसी के साथ देव पुनः जाग जाते हैं और सूर्य का उत्तरायन भी हो जाता है तथा देव अपनी व्यवस्था को पुनः संभाल लेते हैं। 
           ज्ञानी जन ध्यान ज्ञान और उपदेश द्वारा कर्मवीर अपने कर्म के सहयोग द्वारा तथा भक्त जन अपनी भक्ति के माध्यम से तथा इन सब से अलग हटकर आध्यात्मिक जन जो आत्मा ओर अदृश्य शक्ति की भक्ति में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं वो शक्तियों को साक्षात जमीन पर लाने में लगे रहते हैं।सभी के अलग अलग प्रयास कर देव शयन काल में देवों की शक्तियों को जाग्रत किए हुए रहते हैं।
         संतजन कहते हैं कि हे मानव यह प्रकृति आध्यात्म से लबालब है हर जीव व जगत इस आध्यात्म से भरपूर है। आध्यात्म को सीमा में नहीं बांधा जा सकता है और ना ही यह जंगल गुफाओं और किसी सीमा विशेष या व्यक्ति विशेष में पाया जाता है। वरन यह प्रकृति की वह जागीर है जो सर्वत्र हर जीव व जगत में विद्यमान है।
ज्ञानी का ज्ञान कर्म वीर का कर्म और भक्त की भक्ति यही उसकी आध्यात्मिक शक्ति होती है और वही उसका भगवान होता है। इससे हट कर केवल करिश्माई मार्ग होते हैं और उसका एकाधिकार केवल अदृश्य शक्ति के अदृश्य के पास ही होता है किसी भी मानव के पास नहीं। अगर ऐसा ना होता तो मानव सभ्यता ओर संस्कृति को हर बार विपत्ति का सामना ना करना पड़ता।
     
 इसलिए हे मानव सूर्य का दक्षिणायन की ओर गति करना ही धार्मिक मान्यताओं में देव शयन काल है। यह चार मास वर्षा ऋतु है जो धरती को हरा भरा कर सर्वत्र जलस्रोत भर देती है और अपनी विनाशकारी लीला से जन धन की क्षति भी कर देती है। कई मोसमी बीमारियों को पैदा कर देती है। यातायात बाधित होता है तथा हर व्यवस्था लड़खड़ा जाती है। अतः व्यवहारिक रूप से भी मांगलिक कार्य हो या कोई भी कार्य हो सभी बरसात की ऋतु से प्रभावित हो जाते हैं।
इन सब से जूझता कर्म वीर सहायता कर अपने कर्म के भगवान को सबके सामने पर प्रकट कर देता है। इसलिए हे मानव, ऋतुओं का ज्ञान समझकर कर्म कर तथा भक्त बन कर इस ऋतु से पीड़ित लोगों की रक्षा भक्ति से कर। निश्चित रूप से तेरी शोहरत व्यावहारिक आध्यात्मिक व्यक्तियों की तरह देखी जाएगी।