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देव शयन की ओर , लेकिन कोरोना का जागरण जारी

 
  न्यूज नजर : देव शयन काल की ओर बढने लग गए और 1 जुलाई को देवता सो जाएंगे लेकिन कोरोना महामारी देवताओं के जाग्रत रहते ही आ गई थी और देवताओं के शयन का समय आ गया है लेकिन कोरोना महामारी नकारात्मकता के स्वर मे अपनी घंटिया स्वंय
भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

बजा रही है और विश्व स्तर पर अपनी महिमा के जागरण करवा रही है। इस काल मे उसने सकारात्मक ध्वनियों के शंखनाद को विश्व स्तर तक रोक दिया है और कह रही है मानव अभी मै यही पर ही हू जरा संभल कर रह नही तो मै तुझे संक्रमित कर समझा दूंगी की मै ही मृत्यु के सत्य को साथ लेकर घूमती हूं । हे मानव उन कथाओ की ओर ध्यान दे जब दानव अपने बलबूते से स्वर्ग के साम्राज्य को जीत कर राज करते है और सारे देव अपनी सकारात्मक ऊर्जा को खो बैठते है।

कोरोना महामारी अभी भी सोई नही है ओर गमो के तराने गा कर नकारात्मकता के संगीत सुना रही है।
             दिनांक 1जुलाई से 25 नवम्बर 2020 तक रहेगा देवशयन काल। 25 नवम्बर को देव प्रबोधिनी एकादशी अर्थात देव जाग जायेगे। इस बीच हिन्दु धर्म मे विवाह आदि मांगलिक कार्य रूक जायेगे।
            धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी तक देवताओं का शयन काल माना जाता है। संसार के पालनहार भगवान विष्णु जी आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी को शयन कर जाते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को पुनः जाग जाते हैं। यह चतुर्थ मास का काल इसी मान्यता के अनुसार हिन्दु धर्म में मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लगा देता है। इस चतुर्थ मास में ज्ञान कर्म ओर भक्ति आदि की ही महिमा धर्म ग्रंथो में बतायीं गई है और उसी के अनुसार ही धार्मिक जन कथा कीर्तन हरिभजन का आनंद लेते रहते हैं।
                  खगोल शास्त्र के अनुसार सूर्य वर्ष में अपनी धुरी पर बारह राशियों पर भ्रमण कर बारह संक्रांतियो को बनाता है। हमारे यहा केवल मकर संक्रांति का ही ज्यादा धार्मिक महत्व है। सूर्य जब भ्रमण करता हुआ दक्षिणायन की ओर चला जाता है तब सूर्य का प्रकाश दक्षिण में ज्यादा पडता है व उत्तर दिशा सूर्य के प्रकाश को ज्यादा नहीं ले पाती। धार्मिक मान्यताओं में उत्तर दिशा देवों की मानी जाती है तथा दक्षिण दिशा दैत्यो की मानी जाती है। इस कारण उत्तर दिशा में सूर्य की रोशनी ज्यादा नहीं पडने के कारण सूर्य के इस दक्षिणायन को देवशयन काल कहा जाता है।
                वर्षा ऋतु भी मुख्य रूप से सूर्य की कर्क संक्रांति व सिंह संक्रांति में मानी जाती है फिर भी मिथुन राशि के आर्द्रा नक्षत्र से तुला राशि के स्वाति नक्षत्र तक वर्षा मानसून गर्भ लक्षण रचना तथा मानसून वर्षा नक्षत्र माने जाते हैं।
      सूर्य के सायन मत में सूर्य की सिंह व कन्या राशि को ही वर्षा ऋतु का काल माना जाता है जो 23 जुलाई को सूर्य सिंह राशि में प्रवेश कर वर्षा ऋतु का आगाज़ करगे तथा 23 अगस्त से 23 सितम्बर तक कन्या राशि में बर्षा काल करेंगे।
       चूंकि तीनों ही देवशयन सूर्य का दक्षिणायन तथा वर्षा ऋतु लगभग एक ही समय पर शुरू होतीं हैं जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर मुख्य घटक के रूप में कार्य करतीं हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 16 जुलाई 2019 को सूर्य की कर्क संक्रांति रात्रि 28 घंटे बाद अर्थात 17 जुलाई को प्रातः 4 बजकर बतीस मिनट पर शुरू होंगी।
        22 जून को सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश के साथ ही सूर्य की दक्षिणायन गति व वर्षा ऋतु प्रारंभ हो गयी है।
       अर्थ वयवस्था में देव शयन काल का विशेष महत्व होता है। देव शयन काल में ही पूरी वर्षा ऋतु होती है। इस वर्षा ऋतु के कारण भूमि का जलस्तर बढ जाता है और वातावरण भी ठंडा हो कर कार्य क्षमता को बढा देता है। वर्षा से जल के सरोवर तालाब कुएँ बाबडी सभी भर जाते हैं जिससे पेयजल तथा साथ ही साथ सिंचाई के भी पानी उपलब्ध हो जाता है। वन उपवन पहाड़ आदि सभी हरे भरे हो कर वनस्पति और फूलों व फूलों से लद जाते हैं। कृषि प्रधान देशो के लिए तो वर्षा वरदान बन कर करोडों लोगों के लिये खेती बाड़ी में रोजगार देने वालीं सिद्ध होती है। खेत के उत्पादन से आर्थिक व्यापार धंधे शुरू हो कर व्यापार को बढा देते हैं तथा घरेलू व्यापार के साथ साथ विदेशी व्यापार को भी बढा देते हैं। बाजार में जब आर्थिक कार्य बढ जाते हैं तो उद्योग धंधे भी खूब चलते हैं।
               देव शयन काल ही अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करता है। खेत खलिहान लहलहाने के साथ साथ बन उपवन में सैर सपाटे बढ जाते हैं और जगह जगह मेले लग कर रोजगार को बढा देते हैं और साथ ही सामाजिक संरचना में हम की भावना बढ जाती है। धन राशि ही जीता जागता भगवान होता है जो देवशयन काल में खेतों वन उपवन पहाड़ आदि आर्थिक ओर औधोगिक बाजारो में पाया जाता है। वर्षा की स्थिति के ही कारण नये नये उत्पादों के उद्योग धंधे शुरू हो जाते हैं तथा व्यवस्था की परीक्षा में जमीन पर सिद्ध हो जातीं हैं कि भविष्य में वर्षा ऋतु के लिये किन किन सावधानियां को रखा जाय। इसके साथ ही भंडारण व्यवस्था देवशयन काल की वर्षा ऋतु तय कर देती हैं।
       संतजन कहते हैं कि हे मानव मुख्य रूप से वर्षा ऋतु चार मास की होतीं हैं। सावन भादवा जम कर बरसते हैं और आसोज कार्तिक मास में यह रूक कर या कभी कभी वर्षा करती हैं। इस देवशयन काल में देवता तो सो जाते हैं और धरती के भगवान जाग्रत हो जाते हैं। किसान खेतों में अन्न उपजा कर तथा वर्षा कालीन मोसमी बीमारियों की चिकित्सक रोकथाम करेके और वर्षा की विनाशकारी लीला तथा बाढ से राहत देने वाले साहसी वीर तकनीकी लोग तथा सहायता करने वाले भामाशाह तथा सरकार यह सब मिल कर धरती पर भगवान की तरह काम करते हैं।
                      इसलिए हे मानव यह चतुर्थ मास का काल तेरे जागरण का काल है इसलिए अपने सेवा कर्म से वर्षा ऋतु का लाभ ले तथा वर्षा के जल का संरक्षण कर। वृक्षारोपण कर। कोरोना महामारी से बचाव रख तथा दूसरो को भी जागरूक बना। वर्षा की मोसमी बीमारियों से बचाने के संदेश दे तथा यथा संभव वर्षा बाढ़ पीड़ितों के लिए योगदान कर। इस समय के योगदान ही अर्थव्यवस्था के लिए विनियोग होगा जो वर्ष भर अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगा। तथा कोरोना महामारी के जागरण को ध्यान मे रखते हुये लोगो को बचाव के रास्ते बता तथा ताकि हर तरह से कोरोना महामारी के जागरण को खत्म किया जा सके और सकारात्मकता के जागरण का शंखनाद किया जा सके। डर मत ओर मन मे सकारात्मकता की घंटी बजा ताकि इन नकारात्मक धवनियो का अंत हो और तेरे मन मे सोया हुआ सकारात्मक देव जाग उठे।