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प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करेंगे तो मिलेगा हजार अश्वमेध यज्ञ का लाभ

भगवान को कार्तिक मास तथा एकादशी तिथि अति प्रिय हैं, इसी कारण इस एकादशी में रात्रि जागरण करना, दीपदान करना, प्रभु नाम का संकीर्तन करना अति उत्तम कर्म हैं। जब कोई भक्त इस एकादशी का व्रत करते हुए तुलसी का पूजन करता है तो उस पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है।

 

देवोत्थान, प्रबोधिनी एवं देवउठनी एकादशी का महत्वपूर्ण व्रत है। माना जाता है कि यह उपवास करने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल पा लेता है। किसी कामना को लेकर कोई यह व्रत करता है वह कामना अवश्य पूरी होती है। यह व्रत पाप नाशक, पुण्यवर्धक, ज्ञानियों का मुक्ति दाता माना गया है।

शास्त्रों में यह वर्णित

इस व्रत के पुण्यों के संबंध में शास्त्रों में वर्णन आता है कि जब नारद जी ने ब्रह्मा जी से प्रबोधिनी एकादशी के पुण्यकर्मों के बारे में पूछा था तो ब्रह्मा जी ने स्वयं कहा था कि- यह एकादशी हर प्रकार के पापों का नाश करने वाली, पुण्य की वृद्घि करने वाली तथा उत्तम बुद्घि वालों को मोक्ष प्रदान करने वाली है।

समुद्र से सरोवर तक के सभी तीर्थ इस व्रत की महिमा के आगे फीके हैं। पदमपुराण के अनुसार व्रत के प्रभाव से हजारों अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञों के बराबर फल मिलता है।

मनुष्य के हर प्रकार के पिछले सौ जन्मों तक के पाप भी रात्रि जागरण करने से रुई के ढेर के समान भस्म हो जाते हैं। मनुष्य के कई जन्मों के नरकों में पड़े पितर भी सदगति को प्राप्त करके प्रभु के परमधाम को प्राप्त होते हैं। जो लोग भगवान विष्णु की कथा सुनकर अपनी सामर्थ्यानुसार कथावाचक की पूजा करते हैं उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। जो लोग भगवान के मंदिर में संकीर्तन करते हुए नृत्य करते हैं उनकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

व्रत करने वाले को एक नवम्बर को प्रात: 9.45 से पहले अपनी सभी दैनिक क्रियाएं समाप्त करके ठाकुर जी के पूजन के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।