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महालक्ष्मी का प्रकट काल : गुप्त नवरात्रा 5 फरवरी से

न्यूज नजर : समस्याओं के समाधान और अपनी इच्छा के अनुसार सुखी व समृद्ध रहने के लिए मानव सदा प्रयत्नशील रहा है। सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन तथा पृथ्वी पर बदलते ऋतु चक्र से उत्पन्न अनेक समस्याओं के समाधान के लिए मानव ने ऐसी प्राण दायिनी ऊर्जा का शनैः शनैः संचय किया।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

वर्ष में सूर्य के उत्तरायन ओर दक्षिणायन से दो बार पृथ्वी पर कई गुप्त प्रभाव पडते हैं जिससे मृत्युतुल्य कष्ट देने वाले दानव रूप धारी रोगों की उत्पत्ति होतीं हैं। इन गुप्त शत्रुओं से गुप्त शक्तियों के माध्यम से ही विजय पाई जा सकती है। इन गुप्त शक्तियों का संचय मानव खान पान रहन सहन पहनावा तथा आवश्यक धान्य, फल, तरकारी, वनस्पति के रूप में करता है।

उससे भी कई ज्यादा अपने मन को मजबूत बनाने के लिए उसे ध्यान और योग में लगाकर अपने साहस और धैर्य को बढाता है तथा मन आने वाली हर समस्याओ के नए समाधान खोजने में जुट जाता है। मन के मजबूत बनने से मन में मनोरोग उत्पन्न नहीं होते और व्यक्ति मन की इसी मजबूती से हर रोगों पर विजय प्राप्त कर लेता है।

सूर्य के दक्षिणायन ओर सावन की वर्षा ऋतु से पूर्व आषाढ़ मास की प्रचंड गर्मी की ऋतु की विदाई की बेला में तथा उत्तरायन की माघ मास की शिशिर ऋतु की विदाई तथा बंसत ऋतु के आगमन से पूर्व व्यक्ति मन को शनैः शनैः बदलता रहता है और उस गुप्त शक्ति के साधनों को जुटाने में लग जाता है ताकि बदलता ऋतुकाल उसे मृत्यु तुल्य कष्ट ना दे।

धार्मिक मान्यताओं में सूर्य का उत्तरायन और दक्षिणायन तथा पृथ्वी पर बदलते ऋतु चक्र के यह वर्षा ऋतु के पूर्व का आषाढ़ मास तथा बंसत ऋतु के पूर्व का माघ मास गुप्त नवरात्रा बनकर मानव को अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव की उपासना ओर गुप्त शक्ति के ध्यान से शक्ति अर्जन करने की ओर लगा देता है ताकि मृत्यु तुल्य कष्टों को देने वाली ऋतुओ के दुष्प्रभावों से बचा जा सके।

गुप्त शक्ति के सामूहिक संचय से एक ऐसे ऊर्जा पुंज का निर्माण होता है जो विकट दानव रूप धारी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर उस महालक्ष्मी का निर्माण कर लेता है जो अजेय बन कर शत्रुओं को पराजित कर देतीं हैं और देवो को पुनः स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाती है।

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि महिषासुर ओर उसके अजेय वीर दानवों का नाश करने के लिए स्वर्ग के सिंहासन से वंचित सभी देवो ने अपने अपने शक्ति पुंज के सहयोग से एक महाशक्ति पुंज बनाया और उस अजेय शक्ति का नाम “महालक्ष्मी” रखा। उस महालक्ष्मी ने फिर सभी की सम्मिलित शक्तियो से मायावी असुर महिषासुर और उसके अजेय वीर दानव को फिर पराजित कर देवों को स्वर्ग की सत्ता के सिंहासन पर बैठाया।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन तथा पृथ्वी पर बदलते ऋतु चक्र के अनुसार अपने शरीर को अजेय रखने तथा रोग रूपी तथा प्राकृतिक प्रकोप रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए रहन सहन और खान पान तथा मन को मजबूत बनाने की शक्ति का शनैः शनैः संचय कर ताकि शरीर रूपी राज्य में आत्मा शरीर को जाग्रत रख सके और मन उस पर सबल बन कर राज करता रहे।

गुप्त शक्ति के संचय और मन की सबलता के बिना यह शरीर रूपी राज्य समाप्त हो जाएगा और आत्मा गंगा के जल की तरह बह जाएंगी और मन अमृत के स्थान पर विष में समा जाएगा।

इसलिए हे मानव सूर्य का उत्तरायन हो चुका है और हाड़ मांस तोड़ती हुई शिशिर ऋतु और माघ मास की अमावस की ओर मन रूपी चांद बढने जा रहा है तथा संकेत दे रहा कि हे मानव, बंसत ऋतु आने से पूर्व शरीर की आंतरिक ऊर्जा का संचय कर और मन को उस ओर ले जा जहां हर स्थिति और परिस्थितियों से मुकाबला करने में सबल बन सके और बंसत ऋतु की नवयौवना रूप धारी शक्ति का आनंद ले सके।