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अंगूठी से निकाला 180 ग्राम का पश्मीना शॉल

कुरुक्षेत्र। कुल्लु के शिल्पकारों ने जब 180 ग्राम वजनी शॉल अंगूठी से आर-पार निकालकर दिखाया तो पर्यटक हैरत में पड़ गए। इस पश्मीना शॉल के अतिरिक्त किन्नौरी और अंगूरी शॉल भी पर्यटकों को खूब लुभा रही हैं। कुरुक्षेत्र उत्सव गीता जयंती समारोह में पर्यटक इस कारीगरी से वाकिफ हुए।

 
कुल्लु की इस शिल्पकला को पर्यटकों के समक्ष रखने के लिए शिल्पकार हीरालाल व उनकी धर्मपत्नी संतोष के साथ-साथ अन्य लोग गुडी देवी, सचिन व संजु भी कुरुक्षेत्र उत्सव गीता जयंती समारोह में पहुंच चुके हैं।

कुल्लु निवासी हीरा लाल ने पर्यटकों को 180 ग्राम वजन वाली पश्मीना शॉल को अंगूठी में से निकालकर दिखाते हुए बताया कि पश्मीना शॉल का कम से कम वजन 120 ग्राम का हो सकता है और इसकी कीमत डेढ़ लाख रुपए से भी ज्यादा है। लेकिन इस क्राफ्ट मेले में इस बार पश्मीना की 15 हजार रुपए से 35 हजार रुपए तक की शॉल और लोई खास आर्डर पर लेकर आए हैं। पिछले 9 सालों से कुरुक्षेत्र उत्सव गीता जयंती समारोह में कुल्लु शॉल, जैकेट लेकर आ रहे हैं। इस बार महिलाओं के लिए अंगूरी स्वैटर और लोंग कोट लेकर आए हैं।
उन्होंने बताया कि कुल्लु में पश्मीना, अंगूरी और किन्नौरी शॉल को तैयार करने के लिए खड्डिया लगाई हुई हैं। किनौरी शॉल को बनाने के लिए 45 दिन का समय लगता है और पश्मीना शॉल को 10-12 दिनों में तैयार कर लिया जाता है।

इस उत्सव में निरंतर आने से उनके 300 से ज्यादा ग्राहक पक्के बन गए हैं, जो हर साल उनसे शॉल खरीदकर ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि ले-लद्दाख और चाईना बार्डर जैसे बर्फीले इलाके में स्नो गोड के बालों से पश्मीना तैयार किया जाता है। इस स्नो गोड के साल में एक बार ही बाल उतारे जाते हैं। उन्होंने बताया कि कुरुक्षेत्र के अलावा दिल्ली में कुल्लु शॉल को लोग ज्यादा पसंद करते हैं।