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लड़ाकू मुर्गे को कटवानी पड़ती है अपनी कलगी


जगदलपुर। क्या आप जानते हैं कि एक मुर्गा भले ही हजार-पांच सौ रुपए का हो लेकिन बस्तर के हाट बाजारों में लाखों रुपए के दांव लगते हैं मुर्गों की लड़ाई पर।

मुर्गा लड़वाने वाले 55-60 किमी दूर से मुर्गा गली पहुंचते हैं। यहां बड़े पैमाने पर मुर्गा लड़ाई का आयोजन होता है और लाखों पुए हार-जीत पर लगाए जाते हैं।

खास बात यह है कि लड़ाके मुर्गे को मैदान में उतरने से पहले अपनी कलगी की बलि देनी पड़ती है। जबकि कलगी मुर्गे की शान होती है। ग्राम डोगरीपारा के एक ग्रामीण ने बताया कि मुर्गें की कलगी लड़ाई में कभी-कभी बाधक हो जाती है।

जैसे-जैसे मुर्गे की उम्र बढ़ती है, कलगी मुर्गे की आंखों के सामने आने लगती है। इससे मुर्गे को लडऩे में परेशानी होती है और वह हार भी जाता है। इस समस्या से बचने की लिए ही अब मुर्गा लड़ाई वाले अपने मुर्गों की कलगी काट रहे हैं।

इधर सुधापाल के खगेश्वर पांडे बताते हैं कि आमतौर पर मुर्गा लड़ाई के दौरान प्रतिद्वंद्वी मुर्गा सामने वाले मुर्गे की कलगी को नोचने का पहले प्रयास करता है, इससे मुर्गा लहूलुहान हो जाता है और रक्त बहने के कारण मैदान छोड़ देता है। बस्तर बाजारों में मुर्गा लड़ाई की परम्परा काफी पुरानी है।