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स्पेशल स्टोरी : तिरंगा बनाना इनका पेशा नहीं, जुनून

 

सिलीगुडी। दुलाल चंद्र शील उम्र के 70 वें पडाव पर है। बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में उनका जन्म हुआ था लेकिन भारत की मिट्टी से इतना प्रेम है कि वे इस प्रेम को शब्दों में बयां नहीं कर सकते। यह देश प्रेम उनकी आंखों व काम में झलकता है।
पिछले 25 साल से दुलाल चंद्र शील का परिवार 26 जनवरी और 15 अगस्त के लिए तिरंगा बनाते है। वे कहते है कि यह मेरे लिए व्यवसाय नहीं, देश प्रेम है। तिरंगा बनाते समय मुझे काफी ऊर्जा मिलती है। मेरी पत्नी ममता शील और मैं देश-प्रदेश की बाते करते-करते या कुछ देश भक्ति गीत गाकर तिरंगा बनाते है। पिछले कुछ साल से बीमार रहता हूं। उम्र जनित बीमारी ने मेरा जीना मुहाल कर दिया है लेकिन अगस्त महीना आते ही, पता नहीं पूरे बदन में कहां से जोश चला आता है। सुबह 4 बजे तिरंगा बनाने के लिए बैठता हूं। बेटे, बहू व बेटी पचासों बार उठने के लिए कहते है। लेकिन मुझसे यह काम छोडा नहीं जाता। मैं रात के 12 बजे तक तिरंगा बनाता हूं। गौरतलब है कि दुलाल चंद्रशील डाबग्राम पंचायत के आशीघर के तेलीपाडा में सपरिवार रहते है। परिवार में तीन बेटे और एक निशक्त बेटी है। पिता के साथ पूरा परिवार तिरंगा बनाने में जुटे रहते है।
दुलाल चंद्र शील के पुत्र परितोष शील ने बताया कि मेरे पिता और मां पिछले 25 साल से तिरंगा झंडा बना रहें है। भारतभूति के प्रति उनमें अथाह प्रेम है। पिताजी 70 की उम्र पार कर चुके है। लेकिन तिरंगा बनाने का उत्साह कम नहीं हुआ। उन्हें तिरंगा बनाकर गर्व महसूस होता है। बकायदा पिताजी 15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा पूरे विधि-विधान से फहराते भी है। और साथ आस-पडोस व ग्राहकों उसके रख-रखाब के बारे में भी जानकारी देते है। परितोष शील का कहना है कि तिरंगा हमारे लिए जीवकोपार्जन का साधन नहीं, देश के प्रति प्यार है। इसे हमारी आगे की पीढी भी बनायेगी। और यह प्रेम बदस्तूर जारी रहेगा।