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ये होता है : सत्ता के साथ-सत्ता के बाद

नामदेव न्यूज डॉट कॉम
अजमेर। सत्ता का नशा और रंग निराला होता है। इसका नजारा बुधवार को यहां गरीब नवाज की दरगाह में तब फिर देखने को मिला जब प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तरफ से भेजी गई चादर पेश की गई। भाजपा का अदने से लेकर बड़े से बड़ा नेता चादर के जुलूस में शामिल हुआ। आखिर सीएम की चादर थी, उसमें शामिल होना यानी नंबर बढ़वाना और गैरहाजिर रहना यानी मैडम की नाराजगी मोल लेना। भला समंदर में पल रहे जीव मगर से बैर क्यों करें। पार्टी नेताओं की यह स्वामीभक्ति काबिलेतारीफ है मगर पांच दिन पहले का मंजर पार्टी नेताओं की असलियत उजागर करता है। पांच दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी ने उर्स में चादर भेजी। उनके सहायक महेश पारीक चादर लेकर यहां आए। आने से पहले उन्होंने आला नेताओं को अवगत करा दिया। लेकिन उन्हें झटका तब लगा जब चादर पेश करने के दौरान एकाध नेता को छोड़कर कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था। यह जाहिर करता है कि भला अब अटलजी से उनका क्या लेना-देना? इससे पहले अटलजी की

जब चादर आती थी तो उसके साथ स्थानीय नेता फोटो खिंचवाने उमड़ पड़ते थे। अटलजी हर साल उर्स में चादर भेजते हैं। पहले उनके निजी सहायक पं.शिवकुमार शर्मा चादर लेकर आते थे। इस बार उन्होंने पारीक के हाथों चादर भेजी। उन्हें चादर भेजना याद रहा लेकिन यहां के भाजपाइयों ने उन्हें ही भुला दिया। इसे कहते हैं बदलाव। अब सत्ता और प्रभाव के आगे दौर भी बदल गया…निष्ठा बदल गई। तीन दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की और बुधवार को सीएम वसुंधरा राजे की चादर के समय बढ़-चढ़कर मौजूदगी दर्शाने वाले नेता अटलजी की चादर वाले दिन दूर-दूर तक नजर नहीं आए।

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