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‘ब्रेन ट्यूमर’ के लिए भारतीय वैज्ञानिक ने बनाया सॉफ्टवेयर


एक भारतीय वैज्ञानिक ने अमेरिका में एक नई MRI आधारित कम्प्यूटर तकनीक विकसित की है। जिससे खतरनाक ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित मरीजों की जिन्दगी के बचने की संभावना का आकलन किया जा सकेगा। इसके अलावा यह तकनीक एक पर्सनलाइज्ड थेरेपी भी उपलब्ध कराएगी। अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह खोज करने वाली वैज्ञानिक एक भारतीय हैं, जिनका नाम डॉक्टर पल्लवी तिवारी हैं। डॉक्टर पल्लवी की हालिया खोज उन क्लीनिकल निष्कर्षों पर आधारित है। जिनसे जानकारी मिली कि 90 फीसदी ग्लियोब्लैसटोमा मल्टीफॉर्मे (जीबीएम) की पुनरावृत्ति ट्यूमर मार्जिन के नजदीक होती है। जिसका मतलब है कि घातक कोशिकाएं ट्यूमर की बाहरी सतह पर होती हैं। लेकिन वे आसानी से प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई नहीं देतीं। जीबीएम एक बेहद आम और खतरनाक कैंसर है। जो मस्तिष्क से शुरू होता है। डॉ तिवारी ने बताया, ”जीबीएम के कुल मरीजों में से पांच फीसदी से भी कम मरीज पांच साल से ज्यादा जिंदा रह पाते हैं। कैंसर के इलाज के लिए कई तरह की दवाइयों और क्लीनिकल ट्रायल्स की खोज के बाद भी सभी जीबीएम मरीजों पर एक ही तरह की इलाज की प्रक्रिया इस्तेमाल की जाती रही है।”

डॉ तिवारी और उनकी टीम की तरफ से विकसित की गई कम्प्यूटर तकनीक से ट्यूमर की बाहरी सतह पर साधारण से दिखने वाले स्थानों से ऐसी सूचनाएं प्राप्त की जा सकेंगी। जिससे कम आक्रामक कैंसर से पीड़ित मरीजों को उनकी जिंदगी बचने की संभाव्यता के बारे में और भी ज्यादा विश्वसनीय जानकारी हासिल की जा सकेगी। साथ ही उन्हें पर्सनलाइज्ड थेरिपेटिक क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए भी गाइड किया जा सकेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ तिवारी मूल रूप से मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंनें हाल ही में अपनी रीसर्च के लिए रेडियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका (आरएसएनए) मीटिंग में प्रेजेंटेशन दी। उन्होंने एसजीएसआईटीएस इंदौर से ग्रैजुएशन किया। इसके बाद वह बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी के लिए अमेरिका चली गईं। वह इस समय बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर है। साल 2012 से वह अर्ली डायग्नोसिस, प्रॉग्नोसिस और ब्रेन ट्यूमर्स के ट्रीटमेंट में नई खोज करने के लिए काम कर रही हैं।