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गर्मी ने मार्च में ही तोड़े रिकॉर्ड, बढ़ जाएगी ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार

स्पीति। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल-स्पीति में गर्मी ने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। मार्च माह में पहली बार पारा 20 डिग्री के पार हो गया है। यही क्रम चलता रहा तो आने वाले दिनों में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी सामान्य से कई गुना तक बढ़ जाएगी। पूर्व में मार्च माह में लाहौल का न्यूनतम पारा माइनस में रिकॉर्ड किया गया है, लेकिन पहली बार इस साल न्यूनतम पारा भी माइनस को पार कर तीन डिग्री तक पहुंच गया है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि लाहौल घाटी में अटल टनल के निर्माण के बाद पर्यावरण में बदलाव देखने को मिला है। लगातार बढ़ती वाहनों की आवाजाही से समस्या लगातार बढ़ रही है।
घाटी में हरियाली कम है और वाहनों से निकलने वाली कार्बन गैस को यहां का वातावरण अवशोषित नहीं कर पा रहा है। इसका सीधा असर लाहौल के तापमान पर पड़ रहा है। वहीं, घाटी के किसान-बागवान भी बढ़ती गर्मी से परेशान हैं। पहले मार्च माह में खेतों से बर्फ हटाकर बिजाई करनी पड़ती थी, लेकिन इस बार खेतों में बर्फ कहीं दिख नहीं रही है। किसान सुरेंद्र, वीरसिंह, अनिल, रमेश, कुंदन ने कहा कि मार्च माह में इससे पहले इतनी गर्मी नहीं हुई है। बढ़ती गर्मी के कारण पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की कमी हो सकती है। जिला कृषि अधिकारी चौधरी राम ने कहा कि पारा बढ़ने से फसलों के उत्पादन पर संकट मंडरा सकता है। फसलें गर्मी के कारण बीमारियों की चपेट में आ सकती हैं।
सेटर फॉर एनवायरमेंटल एसेस्मेंट एंड क्लाइमेंट चेंज के केंद्रीय प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल ने कहा कि अटल टनल बनने के बाद लाहौल घाटी में वाहनों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। इससे कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है। घाटी में हरियाली न होने से पारा लगातार बढ रहा है, जो भविष्य में बड़ी समस्या बन सकती है। पूर्व में यहां सर्दी के छह माह तक वाहनों की आवाजाही पूर्णतय: बंद रहती थी, लेकिन अब टनल बनने से आवाजाही हो रही है, इससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।