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डाल्फिन मछलियों को रास आ रही गंगा नदी


कानपुर। राष्ट्रीय जलीय जीव डाल्फिन की गणना के लिए वन विभाग व वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की टीम ने कानपुर से फतेहपुर के बीच गंगा नदी में सर्वे किया। सर्वे के मुताबिक कानपुर की सीमा ड्योढ़ीघाट के बाद डाल्फिन गंगा में इठलाती देखी गई। ज्यों-ज्यों टीम आगे बढ़ती गई डाल्फिनों की संख्या में इजाफा होता गया।

वर्ल्ड वाइड के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी डा. सीताराम ने बताया कि 22 अक्टूबर से लगातार तीन दिनों तक गंगा में डाल्फिन का सर्वे किया गया। कानपुर की सीमा खत्म होते ही फतेहपुर तक गंगा का यह इलाका डाल्फिन के मुफीद देखा गया।

बताया कि हमें विश्वास नहीं था कि यहां पर गंगा में इतनी सारी डाल्फिन होगीं। एक जगह तो डाल्फिनों का समूह देखा गया जिसमें कई छोटे-छोटे बच्चे भी रहें। कहा कि कानपुर की सीमा से फतेहपुर तक 69 किमी. के क्षेत्र में 77 डाल्फिनों को चिन्हित किया गया है। जो गंगा के लिए शुभ संकेत है अगर डाल्फिन का निवास है तो यह समझा जाता है कि वहां पर गंगा स्वस्थ्य है। टैगोर ने बताया कि इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार कर वन विभाग को सौंपी जाएगी। अगर क्षेत्रीय लोग डाल्फिन संरक्षण को लेकर जागरूक हो तो जहां डॉल्फिन हैं उस क्षेत्र को सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के लिए कवायद की जा सकती है।

केन्द्र सरकार के लाख प्रयास के बावजूद कानपुर की गंगा प्रदूषण से मुक्त नहीं हो पा रही है। जिसका प्रमाण राष्ट्रीय जलीय डाल्फिन भी दे दिया है। टीम के सदस्यों ने बताया कि सर्वे गंगा बैराज से किया गया लेकिन कानपुर की 37 किमी. के क्षेत्र में एक भी डाल्फिन गंगा में नहीं देखी गई। जिससे पता चलता है कि कानपुर सीमा के पानी में प्रदूषण की मात्रा अधिक है।

टैगोर ने बताया कि डाल्फिन मछली नहीं है यह स्तनधारी जलीय प्राणी है जो नेत्रहीन है। इसकी याददास्त बहुत अच्छी होती है यह अपने बिछुडे़ दोस्तों को 20 वर्ष बाद भी आसानी से पहचान सकती है। पानी में 60 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ती है, लेकिन पानी में 10 से 15 मिनट ही अंदर रह पाती है। यूपी में इसे सोस नाम से जाना जाता है असम में शिहू, इसकी औसत आयु 28 वर्ष मानी जाती है। देश में लगातार इसकी घटती संख्या को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 2009 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया।