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कथा नामदेव जी की

बन्धुओ एक बार संत नामदेव जी की छोपडी मै आग लग गई।  सारा सामान जल गया।
आसपास के लोगो ने विस्तर के कपडे किसी तरह बचा लिए । उस समय संत जी  दूसरे गाँव मे धर्म प्रचार के लिये लोगो के बीच सेवा दे  भजन गा रहे थे।
तभी भजन बंद हुआ  किसी ने कहा संत  जी आपकी  कुटिया मे आग से सब कुछ जल गया । संत जी बोले प्रभु को जो कुछ चाहिये था मुझे बोल देते। मेरे कारण किसी बाजू बाले को हानी न हुई हो। सभी जन संत जी के साथ झोपडी पर गए किसी का कोई नुकसान नही हुआ। लोगो ने  कहा संत जी ये कपडे हम बचा पाये है।
यह सुन नामदेव जी की आखो से आँसु आने लगे। और बोले है प्रभु इन बच्चो को माफ़ करना। ये नही जानते इनसे मेरे प्रति प्रेम के कारण गलती हो गई प्रभु इन्हे माफ़ कर देना। और संत नामदेव जी ने वो कपडे जलती आग मे डाल दिये और बोले प्रभु आप ने मेरी सभी सामग्री ले ली अब प्रभु सौयेगे कहाँ। हे विटठल हे नारायण आप धरती पर  सौयेगे नीद नही आयेगी ये लो विस्तर प्रभु।  यह देख किसी को अच्छा लगा। किसी को हसी आई।
साम को उसी जली कुटिया की ठंडी जगह साफ कर प्रभु का भजन किया और सौ गए सुवह जब नीद खुली तो संत जी  को किसी के पुकारने की आवाज आइ नामा  ओ  नामा
नामा ओ नामा

संत जी दौड कर वाहर आये और देखते है कि भगवान  संत जी की वो पगडी जो आग मे जल गई थी सिर मे बाँध कर भैस बदल कर  सुंदर  आश्रम बना रहे जो पूर्ण हो गया है और  संत जी से पूछ रहे है की  पूजा स्थल कहाँ बना दू।
इतना सुन संत जी उनके चरणो मे गिर गए व जोर जोर से रोने लगे  इस आवाज  को सुन आस पास से लोग आने लगे
सभी यह आश्चर्य देख दंग रह गए।
पास आकर  बोले संत जी
अब दुख क्यो कर रहे है इतनी सुंदर कुटिया बन गई ।
संत जी बोले यही तो दुख है की इतनी सुंदर कलाकारी मेरे प्रभु ने अपने हाथो से की है।
मेरे प्रभु के कोमल हाथ है उन्हे कितना कष्ट हुआ होगा ।
दूसरा दुख कि प्रभु इस सुन्दर घर मे पूजा का स्थान मुझसे पूछ रहे है कहाँ बना दू।

है प्रभु यदि पूजा का स्थान बनाना है तो मेरे सभी मानने वालो के ह्र्दय मे बना दो प्रभु
बस जाना  उन सब के दिल मे जो कहे मै नामदेव हू

बन्धूओ

उस मजदूर रूपी भगवान विटठल जी ने
नामदेव जी से कहा   नामा  मे वचन देता हू
आज से तुम  नामा  नही  नामदेव के नाम से विख्यात हो जाओगे
लोग मुझसे पहले तुन्हारा स्मरण करेगे
और जो तुन्हे मानेगा कभी भुका नही रहेगा  व वैकार नही रहेगा
इतना कह प्रभु अंतर ध्यान हो गये

बोलो संत नामदेव जी महाराज जी की जय

ये कथा मैने सुनी थी जिसे याद कर पूर्ण लिखने की कौसिस की  कुछ शब्द गलत हो तो क्षमा करना

-रामकुमार नामदेव, नरसिंहपुर