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OMG : सिरोही कांग्रेस मुक्त हुआ, गहलोत-पायलट की नीति ले डूबी


सिरोही। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने राजस्थान में भले ही कांग्रेस की सरकार वापस ले आए को लेकिन उनकी टिकट वितरण की नीति ने सिरोही जिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त’ का सपना साकार कर दिया है। जी हां, सिरोही जिला पूरी तरह से कांग्रेस मुक्त हो गया है। यहां की तीनों सीटों से कांग्रेस को हाथ धोने पड़े हैं। यहां पर हारने वाले तीनों प्रत्याशी अशोक गहलोत गुट के बताए जा रहे हैं।


सिरोही जिले में विधानसभा की 3 सीटें हैं। इनमें सिरोही विधानसभा क्षेत्र समेत पिण्डवाड़ा-आबू और रेवदर विधानसभा क्षेत्र को मतदाताओं ने कांग्रेस से मुक्त कर दिया। सिरोही विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के बागी संयम लोढ़ा जीते तो पिण्डवाड़ा-आबू में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार हुई। वहीं रेवदर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी नीरज डांगी को भाजपा के प्रत्याशी जगसीराम कोली ने 2008 से भी ज्यादा मतों से हराया।

लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस को खड़ा करना मुश्किल
जिले में कांग्रेस के जो हालात हैं उससे यही लग रहा है कि दो महीने बाद शुरू होने वाली लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया में कांग्रेस को खड़ा करना टेढी खीर होगी। दरअसल, पांच साल तक सिरोही जिले में संयम लोढ़ा ने कांग्रेस को खडा किया। सिरोही के सभी 274 बूथों समेत रेवदर और पिण्डवाड़ा-आबू में भी संमय लोढ़ा ने कांग्रेस की जड़ें जमाई।

अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने अंतिम क्षणों में लोढ़ा का टिकिट काट दिया। इससे सिरोही समेत दोनों विधानसभा क्षेत्रों में लोढ़ा समर्थक लाॅबी ने चुनाव से अपने आपको बिल्कुल अलग कर लिया। सभी अपनी विधानसभाओं की बजाय सिरोही विधानसभा में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खडे हुए संयम लोढ़ा के प्रचार में लग गए।

अदूरदर्शी निर्णय ने दिया दूसरा झटका
कांग्रेस के दोनों नेताओं की विफलता इसी बात से पता लग सकती है कि जो कांग्रेस अभूतपूर्व बहुमत पाने की ओर अग्रसर थी उसी को टिकिट वितरण में खामियां रखकर बहुमत के बाॅर्डर पर पहुंचा दिया। ओपिनियन पोल से भी कम सीटें उसे मिली। जीतने वाले निर्दलीयों में अधिकांश कांग्रेस के बागी हैं।

सिरोही जिले में भी मतदान से ठीक पहले कांग्रेस आलाकमान ने दो गलतियां कर दी। एक तो यहां पर कार्यकारी अध्यक्ष की घोषणा कर दी, दूसरी करीब एक दर्जन कांग्रेस पदाधिकारियों व पार्षदों का निष्कासन कर दिया। ऐसे में जो लोग निष्क्रीय थे उनके समर्थक भी अब सक्रीय होकर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार में लग गए। अंतिम दो दिनों में तीनों विधानसभा क्षेत्रों में इसने भी कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया।