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इस बार दिवाली पर सिर्फ ग्रीन पटाखे बेचने की इजाजत, सुप्रीम कोर्ट सख्त

नई दिल्ली। इस बार दीपावली पर आपको तेज शोर करने वाले पटाखों से राहत मिल सकती है। भारत में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया है कि दिवाली पर दो प्रकार के पटाखे ही मान्य होंगे। जिन दो पटाखों को सर्वोच्च न्यायालय ने मान्यता दी है उनमें अनार और फुलझड़ी का ग्रीन वर्जन है। इसके अलावा किसी भी तरह के शोर मचाने वाले और प्रदूषण फैलाने वाले बम-पटाखों की बिक्री पर पाबंदी रहेगी। हालांकि देशभर में इस आदेश की धज्जियां भी उड़ाई जा रही है।दुकानों पर अभी से ही तेज धमाका करने वाले बम, लड़ियाँ आदि बिकने लगी हैं।

पटाखे समय उन पर आधिकारिक स्टांप यानी मुहर जरूर देख लें। इस स्टांप में क्यूआर कोड और सरकारी मुहर शामिल है। अनार और फुलझड़ी का यह ग्रीन वर्जन दो रंगों में उपलब्ध है। सिर्फ ग्रीन पटाखों को ही चलाने और बेचने की अनुमति दी गई है। ग्रीन पटाखों और अनार-फूलझड़ी के अलावा यदि कोई भी विक्रेता पटाखा बेचते हुए पाया जाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। पिछले कुछ सालों से सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण दिल्ली और इसके आस पास के राज्यों के लिए बड़ी मुसीबत बनकर सामने आता है।

ग्रीन पटाखों में कम प्रदूषण होता है

ग्रीन पटाखों से सामान्य पटाखों की अपेक्षा 30 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है । इन पटाखों पर स्टीकर और बारकोड होगा।स्टीकर से इस बात की पुष्टि होगी की ये ग्रीन क्रैकर्स है ।वहीं बारकोड के जरिए आप स्कैन कर ये पता कर सकते है की ये पटाखे कहां बने है, निर्माता कौन है वहीं पटाखे में क्या केमिकल है, इस सब की पूरी जानकारी मिल जाएगी।

आम लोगों की भी जिम्मेदारी है कि इस बार दिवाली पर प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की खरीदारी न करें। देश में एक तो ऐसे ही जहरीला धुआं और बढ़ता प्रदूषण करोड़ों लोगों का स्वास्थ्य खराब कर रहा है। हम सभी को पटाखों पर देश में बैन लगाने के लिए आगे आना होगा तभी देश में बढ़ते प्रदूषण से राहत मिल सकती है।

भारत में बढ़ता प्रदूषण चिंताजनक, लोगों का हो रहा है स्वास्थ्य खराब

भारत में बढ़ते प्रदूषण और आबोहवा पर सुप्रीम कोर्ट कई बार चिंता जता चुका है। दिल्ली और एनसीआर में जहरीले धुआं और आबोहवा से करोड़ाें लोग परेशान हैं।

प्रदूषण के मामले में दिल्ली सहित उत्तर भारत के तमाम शहर पूरी दुनिया में प्रदूषण के नक्शे में सबसे ऊपर हैं। आम दिनों में जहर सांसों से शरीर में जा ही रहा होता है, पर सर्दी के मौसम में तो सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। भारत में प्रदूषण कम करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय अपने 100 दिनों के एजेंडे के तहत आबोहवा आखिर कैसे सुधरे, इस पर एक मसौदा तैयार करने में जुट गया है।

किसी भी बीमारी से भारत में तीसरी सबसे ज़्यादा मौत जहरीली हवा से होती है।हवा में घुले जहर ने 2017 में 12 लाख लोगों की जान ली ।ये आंकड़ा स्टेट ग्लोबल एयर 2019 का है जिसे हेल्थ इफ़ेक्ट इंस्टिट्यूट ने जारी किया है। आबोहवा खराब होने से कई तरह की बीमारियां भी होती हैं और इसका असर भारत आने वाले विदेशी सैलानियों की कमी के तौर पर भी दिखा है।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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