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एक नुगरे की पीठ पर सौ पापियों का भार

न्यूज नजर : कहा गया है कि एक नुगरे व्यक्ति के स्थान पर सौ पापी ज्यादा अच्छे होते हैं। माना जाता है कि सौ पापी व्यक्ति जितना पाप नहीं कर सकते हैं उससे ज्यादा पाप एक अकेला नुगरा व्यक्ति ही कर लेता है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

नुगरा व्यक्ति वह होता है जिसकी नजरों में भगवान नहीं होता और खुद शैतानी दिल रखकर भगवान से भी बडा होने के खेल दिखाता है। मानवीय मूल्य, धर्म, कर्म और विश्वास मान्यताओं को व्ळ एक खिलौने की तरह समझता है। इनका चोला ओढ़ सभी को भावुक बनाकर योजनाबद्ध तरीकों से लूटकर फिर सभी के लिए झूठे आंसू बहाता है।

विश्वास देकर विष बांटना उसका मूल धर्म होता है और सत्य को कुचलना उसका ईमान होता है। सब को अपना मोहताज बना देना उसका परम धर्म होता है। साधु बनकर वह दान की याचना करता है और जंगी लुटेरा बन सब कुछ लूट लेता है।

अपने हर अपराध और पाप को वह न्याय बताकर उसे सत्य की तरह सर्वत्र फैलाता है और अपना दल बनाकर सर्वत्र भगवान की तरह पूजे जाने की कवायद करता है। उसके गुणगान का विरोध करने वालों को हर तरह से मिटा देता है, हर मिटने वाले को वह मानव द्रोही घोषित करता है।

इन गुणों को धारणकर नुगरा व्यक्ति सौ पापियों पर भी भारी पडता है। सौ पापी अपने पाप की सजा काटकर हीन भावना के शिकार हो जाते हैं जबकि नुगरा व्यक्ति सौ गुनाह करके भी पछतावे के स्थान पर नए गुनाह की एक नई योजना बनाकर अति उत्साहित हो अपना मनोबल बढाता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव पापी व्यक्ति तो अपने पाप की सजा काटकर सत्य के मार्ग पर चलने लग जाता है पर नुगरा व्यक्ति तो पाप करके भी उसको पुण्य मानता है। पापों का संग्रह कर वह सबको पुण्य के खातों से भुनाता है और सदैव यहीं करता है। वह पापों का बादशाह बन नुगरे की उपाधि धारण कर लेता है। गुरु, पीर, भगवान सब उसके खेल को देखते हैं और एक दिन 101वें गुनाह पर वह काल चक्र से उसका खातमा कर देते हैं।

इसलिए हे मानव तू सौ पापियों से मत डरना, वरन एक नुगरे से ही दूर रहना क्योंकि सौ पापी तेरा कुछ नहीं बिगड़ पाएंगे पर एक नुगरा सब कुछ खत्म कर देगा।

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