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कालचक्र ने सभी के पांव उखाड़ दिए, चाहे हो सूरमा

न्यूज नजर : काल चक्र ने बिना भेदभाव किए सभी को धराशायी कर दिया। चाहें वह दुनिया का शहंशाह रहा हो या फकीर। उनके भी पांव उखड़ गए जो किसी भी शक्ति के सूरमा ही क्यो ना रहे हों। 

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

 इस जगत में आकर प्राणी अपने चंद स्वार्थो की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर जाता है और एक ऐसा माहौल बना देता है कि सदियों तक आने वाली पीढ़ियां इसकी कीमत चुकाती रहती है और बैर बदले को चुकाने के लिए अपनी जीवन को गंवा देतीं हैं।

मानव सभ्यता और संस्कृति के इतिहास में चाहे वो सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक या राजनीतिक कोई भी क्षेत्र क्यो ना रहा हो, इन क्षेत्रों में भारी शक्ति का सूरमा कोई भी रहा हो उन सबके अंहकारों की कीमत इस काल चक्र ने ही चुकाई है। इतना ही नहीं अहंकार की छाया में जो भी पले उनका भी सदा जर्जर अंत हुआ है।

सदियों से वर्तमान तक राज करने की नीतियों ने ऐसा ही किया और उसने सशक्त समाज को बिखेर दिया। धर्म, जाति, लिंग, रंग भेद आदि की नीति से बंटवारा कर उन्हें बैरी बना दिया और लोग अकारण विवाद करते रहे। राज करने की नीति के अहंकारी लोग आनंद लेते रहे। फिर भी कुदरत के काल चक्र से ये भी नहीं बचे, लेकिन इनकी उपजाई फसलों की कीमत हर किसी को चुकानी पड़ी, मानव में बैर बदला लेने की भावना बलवान बनती रही।

जीवन में सदा कई दौर आते हैं ओर उनमें से कुछ दौर मन को राहत दे जाते हैं और कुछ मन को आहत कर जाते हैं। जब राहत के दौर होते हैं तो वे एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण कर जीवन के विकास को बहुत बडी ऊचाईयां दे जाते हैं और इसी के कारण व्यक्ति समाज, राष्ट्र और दुनिया के लिए बहुत कुछ कर जाता है और उसका नाम सदा के लिए रोशन हो जाता है।

वहीं मन को आहत देने वाले क्षण नकारात्मक ऊर्जा का निर्माण कर उनमें सदा बैर बदले की भावना ही पैदा कर देते हैं चाहे वो किसी भी क्षेत्र का शहंशाह ही क्यो ना हो बन जाए।

इस कारण वह अपनी आहत का बदला हर एक व्यक्ति से लेने लग जाता है और अपनी विकास की ऊचाईयां को कलंक लगाता हुआ सांप सीढ़ी के खेल की भांति अर्श से फर्श पर आ जाता है। प्रकृति का हर मौसम अपना यही संदेश देता है कि किसी भी मौसम में वो चाहे राहत दे या आहत करे लेकिन अगला मौसम उसका बिलकुल बदल जाता है और कोई बैर बदला नहीं लेता।अर्थात कोई नकारात्मक ऊर्जा पिछले मौसम की नहीं लाता है।

सार रूप में प्रकृति के इसी सिद्धांत के अनुसार नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र जो जीवन की यात्रा में आ जाते हैं उन्हें त्याग देना चाहिए और सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र को ही साथ रखना चाहिए ताकि हर दौर की ऊर्जा का सकारात्मक पुंज सार रूप में अपने साथ रहे ओर जीवन को विकास की चरम सीमा पर ले जाए।

जीवन के दोर में सभी क्षेत्रों में चाहे वह सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धार्मिक या कोई भी क्यों ना हो इनसे राहत और आहत जरूर मिलती हैं और राजनैतिक चुनावी मौसम में राहत मिले या नहीं मिले पर यह आहत जयादा देता है। अतः राजनैतिक चुनावी आहत की नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र को वहीं छोड़ देनी चाहिए क्योंकि यह मौसम राहत कम और आहत ज्यादा देता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, लोकतंत्र का चुनावी मौसम जल रूपी अमृत को कम बरसाता है और आंधियां व ओलावृष्टि करके प्रेम ओर सौहार्द की फसल को नष्ट कर जाता है जिसका बीमा नहीं होता। इस क्षति पूर्ति का भुगतान वैमनस्यता और बैर बदला रूपी दानव चुकाने के लिए सह उत्पाद के रूप में पैदा हो जाते हैं। व्यक्ति इनसे ही नकारात्मक ऊर्जा पुंज को बढाने लग जाता है।

इसलिए हे मानव, इस धरती पर पांव चाहे किसी भी शक्ति के सूरमाओं का रहा हो। काल चक्र ने सभी के पांव उखाड़ दिए चाहे वो धर्मं, जाति, वर्ग, लिंग में संघर्ष करा कर राज करने वाला हो। इसलिए हे मानव, नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्रों को तू अपने घर में स्थान मत दे और कुदरत के मौसम के सिद्धांतों की तरह व्यवहार कर ताकि आने वाली पीढ़ी इस कर्ज से मुक्त रहे।

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