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धरती कांपती रही, महाबली गाजते रहे 

 

  न्यूज नजर :  हवाएं नादान बन कर सारा माहौल गर्म किए जा रही थी और लू का झोंका सबको झुलसाता हुआ गर्मी के भारी गुणगान करने में ही व्यस्त था और यह मान कर चल रहा था कि अब गर्मियों के राज शुरू हो गए।

भंवरलाल, ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक जोगणिया धाम, पुष्कर

गर्मी अंगद की तरह पांव जमा कर खड़ी हो गयी है। अब तो सारी सत्ता ही गर्मी की है जिसे कोई हटा नहीं सकता। अपने को बलवान समझकर ये हवाएं सर्वत्र एक अन्जानी गर्मी फैलाने में लगी हुई थी और काल के बादशाह का रास्ता साफ कर रही थी। हवाओं का यह रूप देखकर धरती कुछ सोचने लगी कि जैसे सांप और नेवले में दोस्ती हो गयी है, वैसे ही ये हवाएं गर्मी की गुलाम बन सर्वत्र लू को फैलाये जा रही है।

 

    धरती कांपने लगी और सोचने लगी कि कितना अत्याचार, पापाचार भारी हो कर मुझे भयभीत करता जा रहा है, मानव अपने कर्मो के बोझ मुझ पर डालता जा रहा है। देव और दानवों के काल से भी ज्यादा मेरी स्थिति खराब हो गयी हैं। द्वापर में भी मेरी स्थिति ज्यादा खराब थी।जहां राज सिंहासन के लिए भारी अनैतिक जाल गूंथे गये और कई को धोखे से मार दिया गया तो किसी को अपना बनाकर मृत्यु दान में ले ली। छल कपट पाखंड ने मुझे छलनी छलनी कर दिया। यहां तक कि सारा कुनबा मिलकर एक नारी पर अत्याचार कर रहा था। गरजना करने वाले परम महाबली गर्दन झुकाये अपनी कायरता की असली पहचान बता रहे थे,  धर्म न्याय संरक्षक सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे थे कि कहीं हम पर भी वह स्वामी भक्ति से हीन होने का आरोप ना लगा दे। 

        अधर्म और पाप की एक नवीन संस्कृति ने अपने नवाचार शुरू कर ऐसे नव युग का प्रारंभ कर दिया था जहां अबलाएं बालिकाएं बेसहारा और निर्बल धरती को ही अंतिम सहारा समझ बार-बार उसे चूम रहे थे। तपती हुई धरती पसीने से लथपथ थी और एक नये युग के प्रवेश की आहट को सुन रही थी। धरती सोचने लगी यदि नये युग की आहट ऐसी होगी तो मेरा हश्र क्या होगा और कहने लगी कि परमात्मा आप ने तो कहा था कि कृष्ण जी का अवतार होगा और धरती का भार पापियों अत्याचारियों अहंकारी से मुक्त होगा और सामाजिक मूल्यों की स्थापना होगी।श्री कृष्ण जी इनको मुक्त करते करते स्वर्ग चले गये लेकिन उसके बाद अब तक मेरे हर कोने कोने में हजारो लाखों की तादाद में अत्याचार व अनाचार बढ गया है। 

              कल्याण का बीमा करने वाले महाबली अपनी ही उलझन को सुलझाने में लगे थे और बेबस धरती लहू-लुहान हो कर प्यासी निगाहों से आसमान में बैठे बाजीगर से रक्षा की गुहार कर रही थी। हे नाथ अब मुझे ही बलवान बना दो ताकि में अपनी रक्षा कर सकूं और मेरे हाथ में पहनी चूड़ियों को सुरक्षित कर सकूं। दया कर नाथ ! मुझको वो शक्ति प्रदान कर ताकि मुझ पर बसे और जो केवल तूझ पर ही वह आश्रित है और तेरा ही विश्वास उनकी पहली व आखिरी जागीर है वह लूटने-बर्बाद होने से बच जाये और मानव सभ्यता- संस्कृति का छोटा सा टुकड़ा कहीं तो किसी को नजर आये। 

        संतजन कहते हैं कि हे मानव ज्येष्ठ मास की गर्मी और बेकाबू हो कर चलती हवाएं जो मौसम देख कर अपना पाला बदल लेती हैं, गर्मी को वीणा के सातों स्वर पर पहुंचा देती है और मोसम से यारी कर सबको लगातार झुलसा-झुलसाकर मृत्युतुल्य कष्ट पहुंचाने पर लगी रहती हैं।

      इसलिए हे मानव तू धीरज बनाये रख बस अब वर्षा रूपी ऋतु का अवतार होने वाला है और धरती गर्मी के अत्याचार से मुक्त होने वाली है। अपने लोगों को सभी परेशानियों से भले ही नहीं पर उनको मृत्यु तुल्य कष्टों से उभारने वाली है, जल संकट को खत्म कर सर्वत्र हरियाली करने वाली है। थोडा और धीरज रख यह गरमी की ऋतु और उसके कदम से कदम मिलाती ये गर्म हवाएं अब थोडे ही दिनों में जाने वाली है।

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