चंडीगढ़। हमारे देश में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके निर्माण के पीछे कई ऐतिहासिक बातें हैं। नवरात्र के समय मंदिरों में खासी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। हरियाणा का एकमात्र शक्ति पीठ कुरुक्षेत्र में है। यह देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्ष कुमारी सती से जुड़ा हुआ है। जब भगवान शिव सती के देह लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठ स्थापित हुए। यहां पर देवी सती का दायां गुल्फ अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा। शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। इस अवसर पर सती व उसके पति शिव के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को बुलाया गया। जब सती को इस बात का पता चला तो वह अनुचरों के साथ पिता के घर पहुंची। तो वहां भी दक्ष ने उनका किसी प्रकार से आदर नहीं किया और क्रोध में आ कर शिव की निंदा करने लगे। सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और स्वयं को हवन कुंड में अपने आप होम कर डाला। इसके बाद उनके शव को लेकर शिव ब्रह्मांड में घूमे। इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण का मुंडन हुआ था। श्री कृष्ण ने माता को घोड़ा भेंट किया था। उस दिन से मनोकामना पूरी करने के लिए माता को घोड़ा भेंट किया जाता है। महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मां भद्रकाली की पूजा करने को कहा। अर्जुन ने कहा कि आपकी कृपा से मेरी विजय हो और युद्ध के उपरांत मैं यहां पर घोड़े चढ़ाने आऊंगा। श्रीकृष्ण व पांडवों ने युद्ध जीतने पर ऐसा किया था, तभी से मान्यता पूर्ण होने पर यहां श्रद्धालु सोने, चांदी व मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं।
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