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श्राद्ध विशेष : मृत्यु के बाद भी मृत आत्माएं…

न्यूज नजर : यह जगत रहस्यों से भरा हुआ है । विश्व की सभ्यता और संस्कृति आज विज्ञान के चरम विकास पर पहुंच चुकी हैं फिर भी विश्व स्तर पर आज भी ऐसी मान्यता अपने अस्तित्व को जिन्दा रखे हुए हैं जिन्हें विज्ञान अंधविश्वास मानता है और और उनकी सत्यता को स्वीकार नहीं करता।

 

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

धर्म तथा अध्यात्म श्रद्धा विश्वास आस्था के साथ जुड़ा हुआ है वो सीधे तौर पर भगवान के साकार रूप को मान कर इस जगत व जीव को उत्पन्न करने वालीं परम शक्ति मानती है। इस आधार के साथ ही वो अपनी खोज ओर अनुभव से जीवन ओर मृत्यु का मुख्य आधार आत्मा को मान कर चलता है। बस यही से विज्ञान धर्म और आध्यात्म से किनारा करने लग जाता है। विज्ञान प्राण वायु रुपी ऊर्जा अर्थात आत्मा की उत्पत्ति का कारण मानवीय क्रिया को मानता है।

 

धर्म और आध्यात्म प्राण वायु रूपी ऊर्जा को ईश्वरीय शक्ति मान कर मृत्यु के बाद भी मृतक की आत्मा की शांति और निश्चित कर्म करने की सलाह देता है और आत्मा की असंतुष्टि और संतुष्टि की बात कहता है।

पौराणिक कथाओं में कई ऐसे वर्णन मिलते हैं जब मृत्यु के बाद भी मृत आत्मा दर्शन देती है तथा कई तरह के संदेश और निर्देश देती हैं साकार रूप में आकर। ऐसे विषयों को विज्ञान सिरे से खारिज कर देता है। विज्ञान इसके साकार प्रमाण मांगता है।

विज्ञान को किनारे करते हुए आस्था ओर श्रद्धा के ठिकानों पर इन मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति ओर मोक्ष के लिए सदियों से आज तक वो सभी कर्म ओर क्रियाऐ की जाती है जो धर्म शास्त्रों ने निर्देशित की है। श्राद्ध पक्ष भी उन्ही निर्देशों मे एक है।

जिस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है उस दिन की चन्द्र तिथि के दिन मृत व्यक्ति के लिए तर्पण व श्राद्ध कर्म अर्थात भोजन ग्रहण करने के लिए निवेदन किया जाता है। इस कार्य के लिए कौवें श्वान, गाय आदि को भोजन करवाता है। कुछ मान्यता में दाग तिथि तथा मृत्यु तिथि की जाानकारी न होने पर अमावस्या के दिन श्राद्ध किये जाने की मान्यता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक यह श्राद्ध कर्म किये जाते हैं।

 

संत जन कहते हैं कि हे मानव इस जगत का पूर्ण सत्य तो जगत बनाने वाला ही बता सकता है कि आत्मा किस तरह से मेरा अंश है और मृत्यु होने के बाद भी यह दर्शन देती है और क्या क्या निर्देश व आदेश देती है। इस विषय को मानने वालों की मानयतायेन धर्म और आध्यात्म पर ही कार्य करती हैं और नहीं मानने वालों को विज्ञान का सहारा मिल जाता है।
इसलिए हे मानव तू भले ही किसी भी मान्यता ओर विज्ञान को मत मान लेकिन तेरे जन्म के बाद रिश्तों के प्राणी जो अब इस जगत में नहीं है उन की स्मृति में वर्ष में एक बार कम से कम जगत व जीव के कल्याण के लिये कोई कर्म कर ताकि तेरी स्मृतियां सदा बनी रहें।

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