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धूल चश्मों पर थीं वो नजरें बदलते रहे

न्यूज नजर : धूल जब चश्मों पर लगी हुई होती हैं तो आंखें धोने से कोई फायदा नहीं होता है क्योकि धूल भरे चश्मे दिखने वाले दृश्यो की कहानी को बदल देते हैं। जब नजरिए बदले हुए होते हैं तो आंखें कुछ भी नहीं कर पाती केवल वो अपने ही नजरिए की कहानी की तस्वीर देखना चाहतीं है।

आंखें बोलतीं नहीं और मुंह को दिखाईं नहीं देता। कान जो सुनते हैं उसे मुंह बोलने लग जाता है और समझ मुस्करा कर रह जाती है और कहती हैं वाह री आंखें इन धूल भरे चश्मो ने तुझे गुमराह कर दिया और हकीकत को उसने जमीदोज कर दिया। हे आंखें काश तेरे ऊपर ये धूल भरे चश्मे नहीं होते तो सब कुछ समझ में आ जाता।

 

चश्मे जब किसी भी विचारो की धारा के रंग में रंग जाते हैं तो नजरो का नजरिया बदल देते हैं और हर घटनाओं की हकीकत का रंग कुछ ओर ही बन जाता है। जमीनी हकीकत परवाने की तरह मिट जाती है और बुझी शमां का धुआं कई सवाल छोड़ कर चला जाता है। शमां परवाने को जलाती हुई अपने ऊपर हमले का इलज़ाम लगातीं हुईं उस परवाने को ही कसुर वार ठहराती है।
ज्ञान कर्म और भक्ति मार्ग ये सब अपने नजरिये से इन आंखों को अपने सत्य की ओर ले जाते हैं और वो ही नजारा आंखे देखती है। सब का उद्देश्य भले ही सत्य की ओर बढ़ने का हो पर सब अपने अपने नजरिये से ही अपनें मार्ग को ही श्रेष्ठ बता कर मार्गों में ही सघंर्ष उत्पन्न कर देते हैं और सत्य को अलग अलग रूपों परिभाषित कर देते हैं।


मीरा की भक्ति में ज्ञान नहीं प्रेम था। पत्थर की मूरत में खो कर वो सत्य के दर्शन करतीं थी। जो आंखे मीरा को देखती थी वो भी नतमस्तक हो कर ध्यान मग्न हो जाती थी। ओर जिनके चश्मो पर विरोध रूपी धूल थी उनकी आंखें भी विरोध ही देखतीं थी और उन आंखों नें विरोध कर उसे राज धर्म का दोषी करार दिया जबकि राजधर्म दुश्मनों की पहचान करने मे असफल रहा ओर मीरा की भक्ति रस में भाव विभोर हो गया ओर वो अपने आप को भूल गया था कि वो कोन है और कहा पर है।
प्राकृतिक न्याय सिद्धांत यहां मोन थे और इतिहास के मोन गवाह बन कर उस कहानी को छोड़ गये जहां कर्म धर्म ओर राज़ धर्म के सत्य को उन चश्मो से देखा गया जिन पर वक्त की धूल चढी हुयीं थी।
संतजन कहतें है कि हे मानव जिन चश्मो पर अपने ही रंग की धूल चढी हुयीं होतीं हैं तो उसे अपने अनुसार जब सब कुछ नजर नहीं आता है तो अपने विचारों की धारा में बह कर सब कुछ नजारे को द्रोही क़रार देता है और ऐसे वातावरण का निर्माण करता है कि सत्य हँसते हुयें बलिदान दे जाता है और झूठ कुछ दिन के लिए जीत के डंके बजवा देता है लेकिन यह डंके एक दिन सत्य की आग में जल कर राख हो जाते हैं और चश्मो की धूल को बदलती हुई ऋतु की हवा उड़ा कर ले जातीं हैं।
इसलिए हे मानव तू इन आंखों पर भले ही चश्मा धारण कर तुझे सत्य के ही दर्शन होंगे लेकिन इन चश्मो पर उन धूलो को मत जमने दे जो चित्र को विचित्र बना दे और जो आदमी ना बना उसे भगवान बना दे।

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