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जानिए क्यों जरूरी हैं “खीर” श्राद्ध/पितृपक्ष/कनागत में ?

 

न्यूज नजर डॉट कॉम

पितृ पक्ष में हम शुरू से सुनते-देखते आए हैं कि श्राद्ध वाले दिन घर में खीर-पूरी अवश्य बनती है। इस विषय
में ज्योतिषाचार्य पंडित पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं, ‘खीर को पकवान में श्रेष्ठ माना गया है। पकवान यानी पका हुआ। खीर देवताओं का बड़ा प्रिय भोजन है, क्योंकि इसमें मिठास है।

पंडित दयानंद शास्त्री
वास्तु एंड एस्ट्रो एडवाइजर, उज्जैन

पितृ पक्ष यानी की श्राद्ध के दौरान हर व्यक्ति अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए तर्पण, अनुष्ठान, ब्राह्मण भोजन आदि अलग-अलग विधि-विधान से कर्म कर के पितृ को तृप्त करते हैं। ऐसे में हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि पूर्वजों के मोक्ष के लिए ब्राह्मणों को सादा और सात्विक भोजन करवाना चाहिए। मीठे में खीर-पूरी बनाया जाना अनिवार्य होता है। यह स्वाद से भरा और सात्विक भोजन माना जाता है। श्राद्ध में खीर बनाने के पीछे एक पक्ष यह भी है कि श्राद्ध पक्ष से पहले का समय बारिश का होता है। पहले के समय में बरसात के मौसम में अधिकांश लोग घरों में व्रत और उपवास करते थे। अत्यधिक व्रत के कारण उनका शरीर कमजोर हो जाता था और श्राद्ध के 16 दिनों में खीर खाने से उनका शरीर फिर मजबूत हो जाता था। इसी परंपरा के तहत श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में पितरों को खीर तर्पण करने की परंपरा है।

पितृपक्ष/कनागत या श्राद्ध पक्ष में सर्व पितृ अमावस्या वाले दिन पितृ को विदा किया जाता है। यह दिन इस वर्ष शनिवार, 28 सितंबर 2019 को सर्वपितृ मनाया जाएगा । इस दिन पितृ को विदा करने के लिए तर्पण किया जाता है। इस दौरान तर्पण के साथ साथ ब्राह्मण भोजन बहुत ही अनिवार्य है। मान्यता है कि ब्राह्मणों को खीर-पूरी खिलाने से पितृ तृप्त होते हैं। यही वजह है कि इस दिन खीर-पूरी ही बनाई जाती है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि पितरों का खाना बनाते समय उनकी प्रिय चीजें तो बनानी चाहिए साथ ही दूध, दही, घी और शहद का उपयोग जरूर करना चाहिए

वैज्ञानिक दृष्टि से दूध और चावल का मिश्रण उत्तम माना गया है। आचार्यों के अनुसार, ‘दुग्ध को अमृत माना गया है। दुग्धपान करने से शरीर स्वस्थ और मजबूत होता है।वर्षा ऋतु की समाप्ति पर जब शरद ऋतु का आगमन हो रहा होता है, तब श्राद्ध पक्ष आते हैं। इस ऋतु परिवर्तन में दूध और चावल का मिश्रण वैज्ञानिक दृष्टि से भी उत्तम है। खीर भगवान को भी प्रिय थी और इससे पितरों की तृप्ति होती है। वैदिक अनुष्ठान में कई बार आहुति भी खीर की देते हैं,जैसे श्रीसूक्त में।

पितृ पक्ष में हम शुरू से सुनते-देखते आए हैं कि श्राद्ध वाले दिन घर में खीर-पूरी (विशेष रूप से खीर) अवश्य बनती है। लेकिन आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है। मान्यता के अनुसार खीर देवताओं को भी प्रिय है। इससे पितरों को तर्पण प्राप्त होता है।

पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार खीर सभी पकवानों में से उत्तम है। खीर मीठी होती है और मीठे खाने के बाद ब्राह्मण संतुष्ट हो जाते हैं जिससे पूर्वज भी खुश हो जाते हैं। पूर्वजों के साथ-साथ देवता भी खीर को बहुत पसंद करते हैं इसलिए देवताओं को भोग में खीर चढ़ाया जाता है।

खीर बनाना बहुत ही आसान है, इसे बनाने के लिए दूध और चावल आसानी से मिल जाता है इसलिए इसे बनाने में किसी तरह की परेशानी भी नहीं होती। यही कारण है कि खीर का प्रसाद और भोग लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पितृ पक्ष मौसम परिवर्तन के समय आता है। इस समय शर्दियों की शुरुआत होती है और ऐसे में दूध और चावल से बनाई जाने वली पकवान हमारे लिए काफी लाभकारी होते हैं।

खीर न केवल खाने में अच्छी मानी जाती है बल्कि इससे हवन, अनुष्ठान आदि किये जाते हैं। यही नहीं खीर में दूध, केसर, इलायची और मेवे के साथ कई चीजों का मिश्रण होता है इसलिए कई जगह मंदिरों में भगवान को खीर से स्नान करवाया जाता है इसलिए श्राद्ध में खीर बनाना अनिवार्य बताया गया है।

 

मच्छरों ओर रोगों से रक्षा करती हैं “खीर”–

 

(खीर खाओ मलेरिया भगाओ )

श्राद्ध के भोजन में खीर बनाकर हम अपने पितरों के प्रति आदर-सत्कार प्रदर्शित करते हैं।

श्राद्ध में खीर बनाने के पीछे एक वजह ये है कि चावल को धर्म ग्रंथों में हविष्य अन्न कहा गया है यानी देवताओं का अन्न, जिसे अग्नि को अर्पित करने पर देवताओं सहित पितर भी तृप्त होते हैं।

वहीं पितृलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग पर माना गया है। खीर में उपयोग होने वाले दूध पर चंद्रमा का प्रभाव होता है। इस धार्मिक और ज्योतिषी कारणों से श्राद्ध में खीर बनाई जाती है।

सभी जानते हैं बैक्टेरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते।

जैसे दूध में दही डालने मात्र से दही नहीं बनाता, दूध हल्का गरम होना चाहिए। उसे ढंककर गरम वातावरण में रखना होता है। बार बार हिलाने से भी दही नहीं जमता।

ऐसे ही मलेरिया के बैक्टेरिया को जब पित्त का वातावरण मिलता है, तभी वह 4 दिन में पूरे शरीर में फैलता है, नहीं तो थोड़े समय में समाप्त हो जाता है। इतने सारे प्रयासो के बाद भी मच्छर और रोगवाहक सूक्ष्म कीट नहीं काटेंगे यह हमारे हाथ में नहीं।

लेकिन पित्त को नियंत्रित रखना तो हमारे हाथ में है। अब हमारी परंपराओं का चमत्कार देखिए। क्यों खीर खाना इस मौसम में अनिवार्य हो जाता है। वास्तव में खीर खाने से पित्त का शमन होता है।

वर्षा ऋतु के बाद जब शरद ऋतु आती है तो आसमान में बादल व धूल के न होने से कड़क धूप पड़ती है। जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है। इस समय गड्ढों आदि मे जमा पानी के कारण बहुत बड़ी मात्रा मे मच्छर पैदा होते हैं इससे मलेरिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है।

 

शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है पितरों का मुख्य भोजन है खीर। इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है। इसके बाद शरद पूर्णिमा को रातभर चांदनी के नीचे चांदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है। यह खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है।

शरद पूर्णिमा की रात में बनाई जाने वाली खीर के लिए चांदी का पात्र न हो तो चांदी का चम्मच खीर में डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी, कांसा या पीतल का हो।

(क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है) यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है। गाय के दूध की हो तो अति उत्तम, विशेष गुणकारी होती है। इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।

इस ऋतु में बनाई जाने वाली खीर में केसर और मेवों का प्रयोग कम करें। यह गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते हैं। हो सके तो सिर्फ इलायची और चारोली डालें। जायफल अवश्य डालें।

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