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पौष की रात : पीने की कसम डाल दी

न्यूज नजर : पौष मास की राते शुरू हो गयीं और हेमन्त ऋतु का सूर्य धनु राशि में बलवान होने के बाद भी ठंडा पड रहा था।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

रात का चाँद अपनी मस्ती में मस्त होकर ठंड का लुत्फ़ उठा रहा था और ऐसे चले जा रहा था मानों उसे इसका ज्ञान नहीं है कि यह ऋतु ठंड की है। झिलमिलाते हुए तारों ने पूछा चाँद से पूछा कि इस कड़कड़ाती ठंड में भी अपनी उसी तेज रफ्तार से चल रहे हो।
आखिर कारण क्या है ? चाँद बोला हमने पीने की कसम खा रखी है इसलिए पी रहे हैं ओर मस्त होकर चल रहे हैं। यह कहते कहते वो आगे बढा तो कुछ ग्रहों ने भी चाँद से पूछा तो भी चाँद ने फिर वही जबाब दिया। चाँद को सफ़र करते करते सुबह होने लगीं तो सुबह की ऊषा बोली हे भाई चाँद अब तुम आराम करो ओर अब हमें पीने दो क्यो कि हमने भी पीने की कसम खा रखी है।

आकाश के इस खेल को देखकर एक संत जी मुसकुरा गये और धुना चेतन कर वो भी पीने की कसम खा कर धुना तपते रहे ओर दिन रात पीते रहे ओर अपनी मस्ती में मस्त होकर वो सिद्ध हो गये। पोष की रात थी संत जी का धूना चेतन था वहां पर एक राहगीर आया ओर संत जी को प्रणाम किया तथा वो भी धूने के सामने बैठ गया।

थोड़ी देर बाद राहगीर बोला बाबा धूना तप रहे हैं तो संत जी कहने लगे बेटा ये तो मेरा जीव ही जानता है। मैने तो पीने की कसम खा रखी है इसलिए दिन रात पीता हूँ ओर मस्ती में मस्त रहता हूँ । राहगीर बोला बाबा आप क्या पीते हो। संत बोले हम राम के नाम का प्याला पीते रहते हैं और यही हमारे गुरु ने पीने की कसम डाल रखी है।

थोड़ी देर बाद राहगीर चला गया। कुछ दिन बाद उस राहगीर के घरवाले उस धूने के पास आये और संत जी से लडने लगे कि आपने हमारे बेटे को गलत शोक में डाल दिया वो दिन रात पीता ही रहता है और कुछ भी नहीं करता। संत बोले ठीक है उसे सब कुछ मिल जायेगा।

घरवाले बोले बाबा उसके फेफड़े गल जायेंगे और कई बीमारियों से उसे फिर जूझना पडेगा। संत बोले उसके फेफड़ो का शुद्धिकरण हो जायेगा और कोई भी बीमारी उसके पास नहीं आयेंगी क्यो कि उसका आत्म बल बढ जायेगा। घरवाले संत जी से लडने लगे कि आप गलत शोक में डाल कर भी अपनी बात कहे जा रहे हो।

इतने में विवाद बढ गया ओर वो राहगीर भी संत जी के धूने पर आ गया। वहां का माजरा देख वो राहगीर अपने घर वालों के सामने बोला बाबा मुझे तो मजा आ रहा है और मेरे घर वाले यूं ही परेशान हो रहे हैं। घर वाले बोले संत जी हमारा कर्जा बढता जा रहा है ओर ये रम की बोतल पीये जा रहा है। संत समझ गये और बोले कि हे राहगीर मैंने तो पीने की कसम खा रखी है राम नाम की ओर तुम रम पिये जा रहे हो। मूर्ख मैने तो राम का नाम पीने की कसम तुझे डाली थी। राहगीर बोला बाबा रात को सोने के बाद में उठा तो राम भूल गया ओर रम ही याद रह गई।
संतजन कहते है कि हे मानव ये समझ के ही फेर होते हैं कि कोई गलतफहमी में पड कर अपने जीवन की राह बदल लेता है और उन मार्गों की ओर बढ जाता है जहां सिवा खुद की ओर अपनों की ही तबाही होती हैं।
इसलिए हे मानव तू अपने शरीर में बैठी आत्मा जो प्राण वायु रूपी ऊर्जा है वो लगातार एक धुन सुनाये जा रही है और मन को समझाये जा रही है कि तू गफलत में होकर जीवन को बर्बाद मत कर। तुझे में राम नाम पीने की कसम डाल रही हो ओर तो ना जाने क्या क्या अहंकारी प्याले पी रहा है ओर अपने ही शरीर के साम्राज्य को दूषित कर रहा है। इसलिए हे मानव तू उस अदृश्य शक्ति के परमात्मा के नाम का प्याला पी और पौष मास की रातों को गर्म कर क्यो कि पौष मास की राते शरीर रूपी साम्राज्य को जमा देतीं हैं और शनैः शनैः पतझड़ करतीं हुईं साम्राज्य को ढहा देती है।

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