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अखाड़ा परिषद गुस्से में, लॉकडाउन के बाद साधू-संत करेंगे महाराष्ट्र कूच

प्रयागराज। साधु संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने महाराष्ट्र में जूना अखाडे के दो साधुओं की हत्या की भर्त्सना करते हुए दोषियों को फांसी देने की मांग की है।

महंत गिरी ने सोमवार को कहा कि संतों की भूमि कहा जाने वाला महाराष्ट्र में इन दिनो रावण राज है। साधु संतों की रक्षा के बजाए उनकी बर्बरता पूर्वक हत्या हो रही है। यह कार्य केवल रावण राज्य में हो सकता है। महाराष्ट्र में अब संतों का कोई स्थान नहीं है और संत अब अपने को वहां सुरक्षित महसूस नहीं करते। जूना अखाड़े के संत सुशील गिरी महराज, कल्पवृक्ष गिरी महराज और वाहन चालक निलेश की नृशंस हत्या इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि अखाड़े के साधुओं की हत्या से सभी साधु-संतों में रोष है। जूना अखाड़े के महामंत्री मंहत प्रेम गिरी महराज और अन्य पदाधिकारियों से वार्ता हुई है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद सभी महाराष्ट्र सरकार से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे। उन्होंने बडी संख्या में साधु-संतों और नागाओं के साथ कूच का ऐलान किया है। कुछ नागा और साधु उस गांव भी जाएंगे जहां अखाडे के साधुओं की हत्या की गई है।

अध्यक्ष ने महाराष्ट्र के साधु संतों से आंदोलन करने की अपील करते हुए कहा कि यदि वह अपने को महाराष्ट्र में सुरक्षित महसूस नहीं करते तो वह उत्तर प्रदेश आ जाएं। उन्होंने कहा जिस बर्बरता पूर्वक साधुओं की हत्या की गई वह राक्षसी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति ही कर सकता। राक्षस को फांसी देना कोई अपराध नहीं है।

उन्होने पालघर पिछले दिनों साधुओं की हत्या को निंदनीय करार देते हुए महाराष्ट्र सरकार से मांग किया है कि उन पुलिसकर्मियों को तत्काल बर्खाश्त करें जिन्होंने साधुओं को उनके हवाले किया था। उन्होने आरोप लगाया है कि पुलिस के सामने साधुओं की लाठी-डन्डों से पीट पीट कर हत्या कर दी गई। उन्होने कहा कि दोषियों के लिए कोई अदालत, कानून कुछ नहीं, ऐसे दुर्दातों की सजा केवल और केवल फांसी है।

महंत ने बताया कि पालघर के पुलिस अधीक्षक से उनकी बातचीत हुई जिसमें उन्होंने आदिवासियों पर साधुओं की हत्या का आरोप लगाया है। अध्यक्ष ने कहा कि साधु-संतों और आदिवासियों का रिश्ता बहुत पुराना है। आदिवासी संत-महात्मा का बहुत सम्मान करते हैं। ये लोग आदिवासी नहीं हो सकते, ये तो राक्षस हैं। राक्षस का वध करना पाप नहीं होता और इसलिए इन्हें दंड के रूप में फांसी दी जानी चाहिए।

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