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पौष पूर्णिमा : संगम तट पर दिखी ठंड पर भारी पड़ती आस्था

 

प्रयागराज। धर्म और आध्यात्म की नगरी प्रयागराज के माघ मेले में पौष पूर्णिमा के पवित्र स्नान पर्व पर स्नानार्थियों का रेला हाड़ कपांऊ ठंड को मानाे मुंह चिढ़ाता दिखायी पड़ा। सोमवार को दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने हर हर गंगे के उदघोष के साथ पावन संगम में डुबकी लगाई।

त्रिवेणी के पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालुओं का रेला भोर से कड़ाके की ठंड को धता बताते हुए घाट पर पहुंचने लगा था जिनमे साधु-संत, कल्पवासी की बहुतयात थी। माघ मास का यह दूसरा स्नान पर्व था।

संगम तट पर एक मास का कल्पवास करने की परंपरा है। इसके लिए दो कालखण्ड तय है। कुछ कल्पवासी (मिथिलावासी) मकर संक्रांति से माघ शुक्ल के पक्ष की संक्रांति तक कल्पवास करते है जबकि अधिकांश कल्पवासी पौष पूर्णिमा से शुरूकर माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते है। पौष पूर्णिमा स्नान से अखंड तन कल्पवास का विधिवत आरंभ हो गया।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ग्रह नक्षतों की अदभुत जुगलबंदी से इस स्नान पर्व का महत्व बढ़ गया है। पूर्णिमा तिथि रविवार की रात 2.40 बजे लगकर मंगलवार की भोर 4.30 बजे तक रहेगी।

 

शीतोष्ण चक्रवात के कारण मेला क्षेत्र में बफीर्ली हवाएं शरीर में नश्तर की तरह चुभ रही थी। रोंगटे खडे कर देने वाली ठंड़ के बीच श्रद्धालुओं ने संगम में वृद्ध, युवा, बच्चे, महिलाएं एवं विकलांगों के हर-हर गंगे की ध्वनि स्नान घाट पर सुनाई पड़ रहा था।

स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने मां गंगा काे दुग्ध अर्पण किया और विधि विधान से पूजा अर्चाना किया। महिलाएं कोहरे में छिपे भगवान भास्कर को अर्ध्य देकर परिवार के लिए सुख एवं समृद्धि के साथ देश में कोरोना से मुक्ति की कामना की। गृहस्थों ने घाट पर बैठे पण्डे और पुरोहितों को चावल, आटा, दाल, तिल, चावल और तिल से बने लड्डू आदि का दान किया।

मेले में आस्था और श्रद्धा से सराबोर पुरानी परम्पराओं के साथ आधुनिकता के रंगबिरंगे नजारे दिखायी पड रहे हैं। भारतीय संस्कृति और आध्यात्म से प्रभावित कुछ विदेशी भी इस दौरान पुण्य लाभ के लिए संगम स्नान करते दिखाई दिए।

कल्पवासियाें के शिविरों के अन्दर से आध्यात्म की बयार बह रही है। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के बाद भी प्राचीन काल से संगम तट पर नियति समय पर आयािजत होने वाले माघ मेले के जीवंतता में कोई कमी नहीं आई है।

माघ मेले के दूसरे बड़े स्नान पर्व से पहले रविवार को खाक चौक के एक शिविर में कल्पवासी समेत पांच लोग कोरोना संक्रमित पाए गए जिसमें तीन पीएसी जवान और एक मजदूर (ठेकेदार का आदमी) शामिल है। मेला शुरू होने से पहले भी सात पुलिसकर्मी संक्रमित पाए गए थे।

कोविड के नोडल प्रभारी डा ऋषी सहाय ने बताया कि मजदूर को होम आइसोलेट करा दिया गया है जबकि चार संक्रमितों को बेली अस्पताल में भर्ती कराया गया है। तीनों पीएसी के जवान मिर्जापुर से मेला क्षेत्र में ड्यूटी करने आए थे।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवीन्द्रपुरी ने कहा कि कोरोना संक्रमण को देखते प्रदेश सरकार को माघ मेले के बड़े आयोजन से बचना चाहिए था और हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लाखों लोगों की भावना आहत न हो इसके लिए इस पर्व को केवल प्रतीकात्मक रुप से मनाया जाना ही उचित था।

उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण में कुंभ मेले को भी सूक्ष्म रूप से मनाए जाने पर जोर दिया गया था, लेकिन उसमें भी भीड़ उमड़ी थी। जिसमें बहुत लोग संक्रमित हुए थे। माघ मेले का आयोजन प्रतीकात्मक रूप में होना चाहिए था।

मान्यता है कि प्रयाग में माघ मास में तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं मिलता। माघ स्‍नान करने से स्‍वर्ग प्राप्ति होती है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदित्य, रुद्रगण तथा अन्य सभी देवी-देवता माघ मास में संगम स्नान करने आते हैं। माघ स्नान करने से पाप नष्‍ट होते हैं।

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