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बलात्कार के बाद अक्सर अस्पताल में होती है ये चूक, रिपोर्ट में किया खुलासा


नई दिल्ली। बलात्कार के बाद पीड़िताओं को पुलिस और अस्पताल में किस लापरवाही व प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है, इसका एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है।

कानून और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की सहायता से गैर सरकारी संगठन ‘पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट’ की रिपोर्ट ने दावा किया है कि बलात्कार पीड़िताओं की चिकित्सा जांच स्वास्थ्य मंत्रालय की निर्धारित गाइडलाइंस के अनुसार नहीं की जाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ये स्वास्थ्य जांच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से निर्धारित दिशानिर्देशों के हिसाब से नहीं की जाती हैं। इसमें कहा गया है कि औपचारिक तौर पर बलात्कार पीड़िताओं से स्वास्थ्य जांच की सहमति नहीं ली जाती है और अक्सर ही इसके लिए बाद में उनके हस्ताक्षर या अंगूठे के निशान ले लिए जाते हैं।

रिपोर्ट में रेप विक्टिम के केवल उन्हीं कपड़ों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजने की सिफारिश की गई है, जोकि उस अपराध से जुड़े हों। इसके अलावा बलात्कार पीड़िता या उसके गवाह और उसके रिश्तेदारों को सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत पर जोर दिया गया है। साथ ही इस तरह की चिकित्सा जांच करने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को उचित ट्रेनिंग कराने की मांग की गई है।

मुकदमे के दौरान अदालत में लगे कैमरा के माध्यम से अभियोजन पक्ष को अदालत में आरोपी की धमकी से बचाया जाता है। रिपोर्ट में दिल्ली में चार फास्टकोर्ट में चल रहे 16 मामले को शामिल किया गया था। अध्ययन में जिन मामलों को शामिल किया गया है। वे परिचितों द्वारा बलात्कार से संबंधित हैं।

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ बलात्कार पीड़िताओं को एफआईआर दर्ज कराने में पुलिस के हाथों उत्पीड़न और अवरोध का अनुभव भी करना पड़ता है।

रिसर्च के मुताबिक, एफआईआर की कॉपी तुरंत उपलब्ध नहीं कराई जाती है और अक्सर पीड़िताओं को इसकी कॉपी हासिल करने के लिए पुलिस का चक्कर लगाना पड़ता है।

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