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सुप्रीम कोर्ट ने मेजर के खिलाफ एफआईआर पर लगाई रोक, महबूबा सरकार से जवाब भी मांगा

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। मेजर आदित्य कुमार पर कश्मीर के शोपियां जिले में पथराव कर रही भीड़ पर गोलीबारी कर कथित तौर पर तीन नागरिकों की हत्या करने का आरोप है। जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।

प्राथमिकी पर मेजर के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश देते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर व न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र व राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार से जवाब मांगा है।

आरोपी मेजर के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल करमवीर सिंह ने प्राथमिकी खारिज करने की मांग की है।पिता ने बहस में कहा कि प्राथमिकी दर्ज करना व इसके फलस्वरूप कार्रवाई करने से राज्य में आतंकवादियों से लड़ने में सशस्त्र बलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

अदालत ने याचिका की एक प्रति महान्यायवादी केके वेणुगोपाल के कार्यालय को देने को कहा है।याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से प्राथमिकी पर रोक लगाने का आग्रह किया।

मेजर आदित्य कुमार व 10 गढ़वाल राइफल्स के अन्य सैनिकों पर पथराव करने वाली भीड़ पर गोलीबारी का आरोप है। इस भीड़ ने शोपियां जिले में 27 जनवरी को गनोवपोरा गांव में प्रशासनिक सेना के एक काफिले पर हमला किया था।

इस गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई थी। याचिका में कहा गया कि राज्य के राजनीतिक नेतृत्व व उच्च पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जिस तरीके से प्राथमिकी दर्ज की गई व इसे पेश किया गया है, यह राज्य के अत्यंत प्रतिकूल माहौल को दिखाता है।

याचिका में कहा गया है कि इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ता के पास भारत के संविधान की धारा 32 के तहत अपने बेटे व खुद के मूल अधिकार की रक्षा करने के लिए अदालत से संपर्क करने के अलावा कोई दूसरा व्यावहारिक विकल्प नहीं बचा, जिसे भारत के संविधान की धारा 14 व 21 के तहत स्थापित किया गया है।

याचिका में कहा गया था कि मेजर आदित्य कुमार को गलती व मनमाने तरीके से घटना में निरुद्ध किया गया, क्योंकि यह घटना सेना के रक्षक दल से जुड़ी है, जो सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम के तहत इलाके में अपनी ड्यूटी पर था।

मेजर की मंशा सैन्य कर्मियों व संपत्ति को बचाने की थी और गोलीबारी केवल सुरक्षित बचने के लिए थी। याचिका के अनुसार अनियंत्रित भीड़ से अनुरोध किया गया कि वह तितर-बितर हो जाए और सैन्य कर्मियों को कर्तव्य निर्वहन में बाधा न डाले और सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाए।

गैरकानूनी रूप से जमा अनियंत्रित भीड़ का व्यवहार अपने चरम पर पहुंच गया, जब उन्होंने एक जूनियर कमीशंड अधिकारी को पकड़ लिया और वे उसे पीट-पीटकर मार देने की प्रक्रिया में थे।
याचिका में कहा गया कि इस समय चेतावनी स्वरूप गोलीबारी की गई।

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