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ग्रहण है छाया का खेल, अज्ञात भय की आशंका

 

न्यूज नजर : चन्द्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा को दो स्थानों पर काटती है। उत्तर के बिन्दु को राहू व दक्षिण के बिन्दु को केतु कहा जाता है। आकाश में इनका कोई भी भौतिक अस्तित्व नही होता है। केवल यहां पृथ्वी और चन्द्रमा की छाया का खेल ग्रहण का कारण बनाता है। धार्मिक मान्यताओं में राहू व केतु छाया ग्रह को ग्रहण का कारण व अज्ञात भय की आशंका बताई जाती है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

आदि काल से ही हमारे आदि ऋषियों ने प्रकृति के रहस्यों को खोजने का प्रयास किया। इन रहस्यों की खोज में बदलते ऋतुओं के गुण धर्म ओर आकाश मंडल की दिन और रात की रचना तथा समय समय पर होने वाले प्राकृतिक प्रकोप आदि समस्त घटनाओं का अनुभव किया उनका अध्ययन किया मनन तथा चिंतन किया तथा विश्लेषण कर अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।

आदि काल के इन वैज्ञानिकों की प्रयोग शाला ये धरती और खुला आसमान था। बस यही से धर्म तथा विज्ञान की पहली शुरूआत होती है। इस पहले विज्ञान की पीठ पर आधुनिक विज्ञान सीढियां लगा कर अपने आधुनिक रूप में आ गया तथा धर्म ने इस विज्ञान का सम्बन्ध प्रकृति के परमात्मा से जोडा और परमात्मा के विस्तृत रूप को खोजने का प्रयास करने लगा।

धर्म ने अभौतिक संस्कृति का निर्माण कर मानव के मूल्यों को स्थापित किया और सभ्यता व संस्कृति में आस्था, विश्वास, पाप पुण्य, श्रद्धा, मापदंड, व्यवहार, प्रतिमान, आचार विचार, व्यवहार, रीति रिवाज आदि स्थापित कर समाज को नियंत्रित और निर्देशित किया।

विज्ञान ने भौतिक संस्कृति का निर्माण कर मानव को सदा सुखी और समृद्ध बनाने में प्रकृति को भगवान नहीं विज्ञान और खोज के नजरिये से देखा तथा प्रकृति के सत्य को जानने की ओर बढा। प्रकृति के हर घटनाक्रम का अनुसंधान कर उसकी सच्चाई को प्रकट किया।

धर्म और विज्ञान दोनों ही एक विज्ञान पर खड़े होकर अलग-अलग धारा में बहते रहे और समाज को अपनी अपनी ओर आकर्षित करते रहे, बस इसी से आस्तिक और नास्तिक परिभाषाओं ने जन्म ले लिया तथा प्रकृति के हर घटनाक्रम को अपने अपने नजरिये से देखने लगे।

धार्मिक और ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार ग्रहण का जीव व जगत पर अशुभ प्रभाव पड़ता है और ग्रहण काल में खाने पीने की मनाही रहती है। पेयजल को ढंक कर रखा जाता है तथा ग्रहण काल में गर्भवती महिलाओं को मकान के अंदर ही रहने के दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।

ग्रहण के पहले सूतक काल में मंदिर के पट बंद हो जाते हैं और पूजा उपासना नहीं होती। ग्रहण के बाद स्नान शुद्धीकरण और दान पुण्य करने की परम्परा आज भी जीवित है। आधुनिक विज्ञान को मात देती यह धार्मिक मान्यताएं अपना अस्तित्व बनाए हुए है।

चन्द्र ग्रहण 27 जुलाई 2018 को भारत के भू-भाग पर होगा। मकर राशि में होने वाले इस ग्रहण का प्रभाव उत्तरा षाढा व श्रवण नक्षत्र में होगा। इस ग्रहण का सूतक 27 जुलाई को दिन में 2 बजकर 55 मिनट से होगा। ग्रहण का प्रारंभ रात्रि 11बजकर 55 मिनट से मान्य है और मोक्ष रात्रि 3 बज कर 49मिनट पर होगा। कुल 3 घंटे व 55 मिनट का होगा।

मिथुन तुला मकर व कुंभ राशि वालों के लिए ठीक नहीं रहेगा। मेष, सिंह, वृश्चिक, मीन राशि वालों को शुभ फलदायक व वृषभ, कन्या व धनु राशि वालों को सामान्य शुभ होगा। निर्माता उद्योग पतियों प्रशासकों व महिला वर्ग को यह ग्रहण कष्ट प्रद होने के योग बनाता है।
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण ऐशिया महाद्वीप के देशों युरोप अफ्रीका आस्ट्रेलिया दक्षिण अमेरिका में भी दिखाई देगा।

विज्ञान की नजरों में ग्रहण एक खगोलीय घटना मात्र है तथा सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण केवल पृथ्वी तथा चन्द्र की छाया का खेल है। ओर किसी भी तरह के अशुभ प्रभावों को विज्ञान नहीं मानता है।

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