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धर्माधारित ‘हिन्दू राष्ट्र’ का स्वर्णिम प्रभात अब दूर नहीं!

पणजी। हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से सातवां अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन जून में आयोजित होगा। साल 2012 में गोवा के रामनाथी में हुए प्रथम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन से प्रेरणा लेकर सामान्य परंतु धर्म एवं राष्ट्र के प्रति अभिमान रखने वाले हिन्दू एकत्रित होने लगे।

हर साल हो रहे इन अधिवेशनों के जरिए देशभर के सैकडों हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों से जुडे सदस्य आते हैं। लव जिहाद, हिन्दुआें का धर्मांतरण, गोहत्या, कश्मीरी हिन्दुआें का विस्थापन, हिन्दू देवताआें का अनादर इत्यादि हिन्दुआें पर अनगिनत आघातों में से एक-दो आघातों के विरुद्ध लडने वाले सैकडों हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना जैसे व्यापक और सर्वसमावेशक ध्येय से प्रेरित हुए हैं।

हिन्दुत्वनिष्ठ नेता और कार्यकर्ताआें तक यह संगठन सीमित न रहकर, धर्माचार्य, संत, विविध संप्रदायों के अनुयायी, निवृत्त न्यायाधीश, अधिवक्ता, संपादक, पत्रकार, उद्योगपति, विचारक, इतिहासकार, डॉक्टर्स, स्वरक्षा प्रशिक्षक इत्यादि का अर्थात विविध क्षेत्रों से संबंधित जानकारों का अभेद्य संगठन बन गया है।

देश के 22 राज्य तथा बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया इत्यादि देशों के सैकडों हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के संगठन की वज्र समान अभेद्य मुठ्ठी तैयार हुई है। इस संगठन का स्वरूप केवल तात्कालिक और वैचारिक स्तर पर ही नहीं रहा, इसे निरंतर सक्रियता भी प्राप्त हुई।

जिहादी आतंकवाद के भय से 90 के दशक में जहां सैकडों नहीं, सहस्त्रों नहीं, पूरे साढे तीन लाख कश्मीरी हिन्दू परिवारों को अपना घर-बार, पैसा, सेब के बाग इत्यादि पर तुलसीपत्र छोडकर निर्वासित होना पडा, तब उनकी ओर से बोलने वाला एक भी राजनीतिक दल नहीं था और राष्ट्रव्यापी तो क्या, किसी प्रांत में भी कदाचित ही आंदोलन हुए हों।

आज परिस्थितियां बदली हैं और देश के किसी भी कोने में यदि राष्ट्र और धर्म पर आघातों होता है तो उसके  विरुद्ध प्रत्येक माह में एक ही समय 10 राज्यों के 50 शहरों में राष्ट्रीय हिन्दू आंदोलन होते हैं। इन आंदोलनों के माध्यम से अपनी जाति, संप्रदाय, संगठन, प्रांत, राजनीतिक दल इत्यादि को एक ओर रखकर, एकत्रित हुए देशभर के हिन्दू और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन, अपनी आवाज परिणामकारक रूप से सरकार तक पहुंचा रहे हैं। अब तक के अधिवेशनों की फलोत्पत्ति देखने के उपरांत इस बार के सप्तम अर्थात सातवें अखिल भारतीय अधिवेशन का स्वरूप अब हम देखें-

 

2 से 12 जून 2018 तक होने वाले सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशनों के अंंतर्गत 2 और 3 जून को चतुर्थ धर्मप्रेमी अधिवक्ता अधिवेशन होगा। हिन्दू धर्मरक्षा के लिए लडने वाले हिन्दुआें को आज विविध स्तरों पर अन्याय सहन करना पड रहा है। ऐसे समय पर उन्हें नि:शुल्क विधिक (कानूनी) सहायता मिलना आवश्यक है।

इस पृष्ठभूमि पर गत तीन अधिवक्ता अधिवेशनों से पूरे भारत के हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ताआें का संगठन हो रहा है। अब इस चतुर्थ अधिवेशन से अधिवक्ता संगठन अधिक सुदृढ होगा। दूसरी ओर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के व्यापक उद्देश्य से तर्त्पर हिन्दुत्वनिष्ठों को, वैधानिक मार्ग से आंदोलन कैसे कर सकते हैं, इसके लिए कानून की आवश्यक शिक्षा देना, जनहित याचिका कैसे प्रविष्ट करनी चाहिए इसकी जानकारी देना, सूचना के अधिकार का उपयोग कैसे करना चाहिए, ऐसे सूत्र सिखाने से धर्मप्रसार, हिन्दूसंगठन और धर्मरक्षा करने वाले हिन्दुत्वनिष्ठों के कार्य की फलोत्पत्ति, इसमें भारी मात्रा में वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही न्यायव्यवस्था की भ्रष्टाचारी प्रवृत्तियों के विरोध में न्यायालयीन संघर्ष में भी संगठित रूप से सहभागी होना, इस अधिवेशन से संभव होगा।

4 से 7 जून को सप्तम् अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन संपन्न होगा। इस अधिवेशन के माध्यम से देश-विदेश में हिन्दुआें पर होने वाले अन्याय और अत्याचार के संदर्भ में विचारों का आदान-प्रदान होगा। इसके साथ ही हिन्दू धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर परिणाम कारक हिन्दू संगठन और अधिक शक्तिशाली कैसे बन सकता है, इस पर विचार होगा। इस समय हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए आगामी वर्ष का समान कृति कार्यक्रम सुनिश्‍चित किया जाएगा।

8 जून को होने वाले प्रथम हिन्दुत्वनिष्ठ साधना शिविर के माध्यम से, हिन्दुत्वनिष्ठों के मन पर आध्यात्मिक साधना का महत्त्व अंकित किया जाएगा। समर्थ रामदासस्वामी लिखित वचनानुसार – आंदोलन से सामर्थ्य मिलता है। जैसा आंदोलन होगा, वैसी शक्ति मिलेगी; पर उसमें भगवान का अधिष्ठान होना चाहिए। – दासबोध, दशक 20, समास 4, पंक्ति 26 अर्थात किसी भी अभियान को सफल होने के लिए ईश्‍वरीय अधिष्ठान आवश्यक होता है। इसके लिए साधना करना अत्यंत आवश्यक है। अत: इस दिशा में शिविर में उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों का दिशादर्शन किया जाएगा।

‘हिन्दूसंगठन’ हिन्दू राष्ट्र स्थापना का मर्म है। इसी उद्देश्य से 9 से 12 जून तक होने वाले तृतीय हिन्दू राष्ट्र संगठक अधिवेशन महत्त्वपूर्ण होगा। आदर्श संगठक में कौन-से गुण होने चाहिए, कौन-से दोषों दूर करने से हम कुशल संगठक बन सकते हैं, गुणों को साधना की जोड देना क्यों आवश्यक है, ऐसे विविध विषयों पर इस अधिवेशन में विचार-विमर्श और दिशादर्शन किया जाएगा। इससे हिन्दू राष्ट्र के ध्येय से प्रेरित संगठक तैयार होंगे।

राजनीतिक स्तर पर हिन्दुआें के हित को ध्यान में रखना अब असंभव है। राष्ट्र और हिन्दू धर्म के वास्तविक हित को संभालने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना ही एकमात्र उपाय है। जनकल्याणकारी हिन्दू राष्ट्र का आदर्श पाठ पढाने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास आज हमारे सामने है ही। भारत के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी वर्ग (इलीट क्लास) हिन्दू राष्ट्र की मांग को अप्राकृतिक कहते हैं।

यहां यह सूत्र भी ध्यान में रखना चाहिए कि संसार के कोने कोने में किसी भी देश में ऐसा कहीं भी नहीं है कि वहां के बहुसंख्यकों का अस्तित्व सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर दिखाई नहीं देता। इसलिए संसार में ईसाईयों के 157, मुसलमानों के 52, बौद्धों के 12 तथा यहूदियों का अपना 1 राष्ट्र है, परंतु संसार की 700 करोड जनसंख्या में से 100 करोड हिन्दुआें के हित की रक्षा हो, ऐसा एक भी राष्ट्र भूतल पर अस्तित्व में नहीं है।

संसार का यह नियम भारत में केवल कांग्रेस के कारण उपेक्षित रहा। इसी नियम को ध्यान में रखते हुए भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के लिए वर्ष 2012 में पहली बार हुए अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन का ऐरावत अब सप्तम अधिवेशन के माध्यम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का स्वप्न यथार्थ में लाने की दृष्टि से और एक आश्‍वासक पग बढाएगा, यह सुनिश्‍चित है।

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