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नर्मदा के दर्शन मात्र से मिलता है गंगा में स्नान जितना पुण्य

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भोपाल/अनूपपुर,। नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु शामिल होकर मां नर्मदा को संवारने में जुटे हुए हैं।

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मंगलवार को यह यात्रा मंडला जिले में भ्रमण पर थी और लोगों ने इसमें शामिल होकर पुण्य लाभ लिया। पुराणों में कहा गया है कि देवभूमि से धरा पर आने वाली पवित्रतम नदी गंगा के स्नान से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से मिलता है।

मध्यप्रदेश भाग्यशाली है कि नर्मदा का उदगम अनूपपुर जिले के छोटे से गाँव अमरकंटक से होता है।

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अनूपपुर जिले में अनेक तीर्थ-स्थल हैं, जो सदियों से ऋषि-मुनियों की तपस्थली होने के साथ-साथ अति महत्वपूर्ण हैं। अमरकंटक में स्थित अत्यंत प्राचीन नर्मदा मंदिर के निर्माण के संबंध में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह मेकल, व्यास, भृगु, कपिल आदि ऋषियों की तपस्थली मानी जाती है। कहा जाता है कि नर्मदा मंदिर का निर्माण करचुली काल में हुआ।

यह भी कहा जाता है कि नर्मदा उदगम् कुण्ड में स्थित रेवा नायक की प्रतिमा यह इंगित करती है कि इसका निर्माण बारहवीं सदी में हुआ होगा। कुण्ड का निर्माण रेवा नायक ने और कुछ सदी बाद भोसले राजाओं ने करवाया। महारानी अहिल्याबाई ने भी इसका जीर्णोद्धार करवाया था।

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नर्मदा मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के 24 मंदिर का एक विशाल समूह है, जिसमें वह लाखन और उदल की प्रतिमा भी है, जो औरंगजेब के शासनकाल में खण्डित कर दी गयी थी।

माई की बगिया

नर्मदा मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर माई की बगिया नाम का एक मनोरम स्थल है, जिसे चरणोदक कुण्ड के नाम से भी जाना जाता है।

जनश्रुति है कि नर्मदाजी बचपन में इसी बगिया में अपनी सहेली गुलबकावली के साथ खेला करती थीं। सोन मूडा-सोनभद्र का उदगम स्थल माई की बगिया लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर सोन मूडा नामक स्थान है, जिसे ब्रह्माजी के मानस पुत्र सोन का उदगम स्थल माना जाता है।

सोन उदगम कुण्ड के पास ही भद्र का उदगम स्थल भद्रकुण्ड है। सोन-भद्र दोनों का संगम कुण्ड समीप ही है। संगम होने के बाद सोनभद्र नया नाम बनकर आगे प्रवाहित होते हैं। संगम कुण्ड से लगभग 150 मीटर की दूरी पर सोनभद्र जल-प्रपात है, जिसकी ऊँचाई लगभग 300 फीट है।

कपिलधारा नर्मदा नदी से 6 किलोमीटर दूर कपिलधारा नामक स्थान है, जहाँ नर्मदाजी का पहला जल-प्रपात प्रचंड वेग से लगभग 100 फीट की ऊँचाई से गिरता है। यहाँ नर्मदाजी की चौड़ाई लगभग 20 फीट है। दूधधारा कपिलधारा से एक किलोमीटर दूर दूधधारा नामक नर्मदा नदी का दूसरा जल-प्रपात है। घने वनों में स्थित इस अति आकर्षक जल-प्रपात की ऊँचाई लगभग 10 फीट है।

प्राचीन करण मठ कलचुरी राजा गांगेय देव तथा कर्ण के समय अमरकंटक अत्यंत विकसित क्षेत्र था। यहाँ के स्थापत्य को देखकर लगता है कि यह क्षेत्र प्राचीन समय में अत्यंत समृद्धशाली धार्मिक क्षेत्र रहा होगा। इन मंदिरों का निर्माण कलचुरी काल में लगभग 1042 ईस्वी में चेदि राजा कर्णदेव द्वारा करवाया गया था।

श्री पातालेश्वर महादेव कहा जाता है प्राचीन पातालेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने की थी। अपने नाम के अनुरूप शिव लिंग पृथ्वी की सतह से लगभग 10 फीट की गहराई पर स्थित है। हर साल पातालेश्वर शिव लिंग जल लहरी में सावन मास के अंतिम सोमवार को श्री नर्मदा का प्रादुर्भाव होता है और शिव लिंग के ऊपर तक जल भर जाता है। जन-मान्यता है कि इस दिन नर्मदाजी शिवजी को स्नान करवाने आती हैं।

भृगु कमण्डल और धूनी पानी

नर्मदा मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर भृगु कमण्डल और उसके पास ही धूनी पानी हैं। कहा जाता है नर्मदा के किनारे एक साधू की साधना के दौरान उनके धूनी स्थल से जल निकला और धूनी को शांत कर दिया। आज भी यहाँ एक कुण्ड, साधू का स्थान और बगीचा है।

कबीर चबूतरा

आश्रम नर्मदा मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्थान के लिये कहा जाता है संत कबीरदास ने यहाँ तप करते हुए सिद्धि प्राप्त की थी। यहीं कबीर कुण्ड है, जिसके बारे में जनश्रुति है कि प्रात:काल 6 से 9 बजे तक नर्मदाजी दुग्ध धारा बनकर इस कुण्ड में दर्शन देती हैं।

धरमपानी काली माता मंदिर नर्मदा मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर एरण्डी संगम नाम का गर्भ हत्या के पाप को दूर करने वाला तीर्थ धाम है। जनश्रुति है कि जो लोग एरण्डी और नर्मदा नदी के पवित्र संगम क्षेत्र में मृत्यु पाते हैं, वे हजारों वर्ष तक रुद्र लोक में निवास करते हैं। श्री बर्फानी आश्रम नर्मदा नदी से पूर्व दिशा की ओर लगभग 100 मीटर की दूरी पर है।

श्रीयंत्र मंदिर

नर्मदा मंदिर से आधा किलोमीटर दूर घने वनों में स्वामी श्री सुकेन्द्रवानंद द्वारा 52 फीट लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई वाला श्रीयंत्र महामेरु मंदिर का निर्माण करवाया जा रहा है। पुराण के अनुसार 50 लाख तीर्थों में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही भक्तिपूर्वक श्रीयंत्र के दर्शन मात्र से होता है।

श्री आदिनाथ जैन मंदिर, कल्याण आश्रम, मृत्युंजय आश्रम, शांति कुटी, शंकराचार्य आश्रम, अमरनाथ घाट, बेल घाट, राम घाट, सिवनी संगम घाट, तुलसी घाट, चंदन घाट, दूधी घाट भी पवित्र स्थल हैं।

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