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बिखरते ढांचे पर मिट्टी का लेपन

न्यूज नजर :  बिखरते हुए ढांचे पर मिट्टी का लेपन कर उसे मजबूत बनाने की कवायद की जाती है तो वो ढांचा बाहर से कुछ सुन्दर सा

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

दिखाई देने लग जाता है पर उस ढांचे का बल नहीं बढ सकता है और कुछ समय बाद ही चरमाराकर कर वो गिर जाता है और उस पर चढ़ायी मिट्टी के लेपन का खर्च भी डूब जाता है। जर्जरित ढांचे को छल की नीति से भले ही बलवान घोषित कर दिया जाय पर वो बलवान नहीं बनाया जा सकता है।

बल और नीति स्वयं अपने आप को प्रकाशित कर जमीन पर अपना पूर्ण अस्तित्व दिखाती है जिसे बखाना नहीं जाता क्यो कि यह प्रकट रूप में होती है।अपनी नीति के जर्जरित ढांचे पर जब रावण ओर दुर्योधन ने छल से अपने बल को प्रकट करने की कवायद की थी तो कुछ ही समय बाद दोनों ही नीतिकारो की नीतियों का ढांचा जर्जरित होकर गिर पड़ा ओर नीति छल ओर बल धराशायी हो कर ओंधे मुंह गिर पड़े। छल द्वारा बनायीं नीति ओर बल की उम्र कम होती है और ना ही यह चरित्र का निर्माण कर सकतीं है।

चरित्र निर्माण छल बल और बिखराव की नीति से नही होता बल्कि चरित्र निर्माण के इर्द-गिर्द स्वत ही भावनाओ का वातावरण निर्मित हो जाता है और जंगल के उस एकलव्य की तरह मिट्टी के गुरू में आस्था ही उसे रोशन कर देतीं हैं।आस्था ही चरित्र निर्माण का मूल मंत्र होता है वहां भावनाएं ही बलवान होती है। जब द्वापर युग में श्री कृष्ण जी की बांसुरी बजती थी तो स्वत ही उस वातावरण का निर्माण हो जाता था जहां सब अपनी सुध बुध खो कर भावनाओ से मोहित हो जाते थें।
संत जन कहते हैं कि हे मानव भावनाएं आस्था के उस ढांचे का निर्माण करती है जहां छल बल ओर नीति अपने कितने भी करतब दिखा ले उस ढांचे को जर्जरित नहीं कर सकतीं। डाई अक्षर प्रेम के उस वातावरण का निर्माण कर देते हैं जहां बल छल ओर नीति भी जर्जरित हो गिर जाती है और प्रेम दुनिया में मिशाल बन कर अपना चरित्र स्थापित करता है जहां भावनाऐ ही बलवान होती है।
इसलिए हे मानव तू अपने सम्बंधों के ढांचों में प्रेम का लेपन कर ताकि समाज के रिश्ते नाते सदा बने रहे। छल बल ओर नफ़रत की नीति के ढांचों को गिरा कर इनका अस्तित्व मिटा दे।

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