Breaking News
Home / breaking / 18 जनवरी पुण्यतिथि : जानिए,  दादा लेखराज कैसे बन गए ब्रह्मा बाबा

18 जनवरी पुण्यतिथि : जानिए,  दादा लेखराज कैसे बन गए ब्रह्मा बाबा

न्यूज नजर डॉट कॉम

अजमेर। भारत भूमि को देव भूमि कहा जाता है।जब-जब भी मानवता पर किसी भी प्रकार का संकट आया तब आध्यात्मिक शक्तियों ने अवतरित हो विश्व की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा की तथा अपने त्याग, तपस्या व सेवा के बल पर समाज को नई दिशा दी। ऐसी ही महान विभूतियों में से एक थे ब्रह्मा बाबा।
इनका मानना था कि हर आत्मा परमात्मा का ही अंश है। अपने भीतर के शिव से परमपिता शिव का साक्षात्कार राजयोग के माध्यम से कर हम उसमें एकाकार हो सकते हैं। कलयुग बीत रहा है और सतयुग आ रहा है। हमें परमपिता की आदर्श सन्तान बनकर सतयुग का वाहक बनना है।

दादा लेखराज का जन्म वर्ष 1876 ई. में सिंध हैदराबाद के एक मुख्याध्यापक के घर में हुआ था। उनका बचपन का नाम दादा लेखराज था। बचपन से ही उनमें भक्ति भाव के संस्कार भरे हुए थे। ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने बचपन से ही खोज शुरू कर दी थी। इन्होंने 12 गुरु किए परंतु मन को शांति नहीं मिली। अपना जीवनयापन करने हेतु इन्होंने हीरे-जवाहरात का धंधा बड़ी ईमानदारी व सच्चाई-सफाई से शुरू किया। वह अपने धंधे से केवल अपने परिवार का ही पालन-पोषण नहीं करते थे बल्कि जरूरतमंदों की झोली भरपूर करके उन्हें भेजते थे। व्यवसाय करते-करते धीरे-धीरे वैराग्य आने लगा। एक दिन बाबा पूजा में बैठे हुए थे कि इनको एक प्रकाश-पुंज नजर आया और वह उठकर बाहर भागने लगे। परिवार वाले सभी घबरा गए। बाद में दादा लेखराज जी ने बताया कि परमपिता ने मुझ में प्रवेश करके इस पुरानी दुनिया का विनाश दिखाया और फिर मुझे नई सृष्टि के निर्माण का आदेश दिया व उसका दिग्दर्शन करवाया। तब से दादा लेखराज ब्रह्मा-बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए और उन्होंने अपनी पुरानी ओम मंडली का नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय रख दिया तथा एक ट्रस्ट बनाकर अपनी सारी पूंजी ट्रस्ट के हवाले कर दी।

माताओं व बहनों को इस ट्रस्ट का ट्रस्टी बनाया। इस प्रकार उन्होंने स्त्री जाति को सबसे ऊंचा दर्जा दिया। तन-मन-धन इनके हवाले कर आप इस ट्रस्ट के सेवाधारी बन सेवा में लीन हो गए। ब्रह्मा बाबा मातृ वर्ग का बहुत सम्मान करते थे। ब्रह्माकुमारी संस्थान का नेतृत्व माताओं-बहनों द्वारा सुचारू रूप से हो रहा है। इस संस्थान में माताओं-बहनों के साथ भाई भी पूरा योगदान दे रहे हैं लेकिन विश्व के सभी केंद्रों की मुख्य एक माता या बहन ही होगी।
इस महामानव ने अपनी भौतिक देह का त्याग 18 जनवरी 1969 को किया तथा मानवता की सूक्ष्म सेवा में लीन हो गए।

Check Also

अवैध मदरसे पर छापा, 21 बच्चों को कराया मुक्त

लखनऊ। दुबग्गा के अवैध मदरसे से बाल आयोग की टीम ने 21 बच्चों को मुक्त …