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ऐतिहासिक गधा मेला शुरू, दांत देखकर लगती है कीमत

सतना। देश में इंसानों के मेलों के साथ पालतू जानवरों के मेले भी भरते हैं। ऐसा ही एक मेला कल शुरू हो चुका है जिसमें गधों का बोलबाला है। कई गधे तो दूल्हे की तरह सज-धजकर आए हैं। दूसरों मेलों में भले ही आधुनिकता का रंग-घुलता जा रहा है लेकिन इस परम्परागत गधा मेले की रंगत अब भी पहले जैसी है।

मध्यप्रदेश के चित्रकूट में तीन दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला गुरुवार से शुरू हो गया है। यह मेला मुगल शासक औरंगजेब ने शुरू करवाया था। जिसकी परंपरा आज भी चली आ रही है। चित्रकूट के गधा मेले में हजारों की संख्या में गधे लेकर लोग पहुंचे । जिनकी कीमत हजार से लेकर 50 हजार रूपए तक की होती है।

खास बात यह है कि गधों के दांत देखकर उनकी कीमत लगाई जाती है। आम लोगों की नजरों में भले ही गधों का कोई मोल न हो लेकिन मेलों में हजारों रुपए चुकाकर उन्हें खरीदा जाता है। मेले में गधों को उनकी खासियत के हिसाब से बेचा जाता है।
व्यापारियों के मुताबिक गधे की कीमत उनकी उम्र और दांत देखकर तय होती है। दो और चार दांत के गधों की कीमत अधिक होती है।

अगला मेला उज्जैन में

अगला गधा मेला उज्जैन में देव प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक लगाया जाता है। इस पांच दिन के मेले में देश भर से गधों के व्यापारी और पालक अपने गधों को लेकर पहुंचते हैं।

बड़े काम का है गधा

गधा पालक बाबूलाल ने बताया कि, गधों को भले ही गैर समझदार जानवर समझा जाता हो लेकिन गधों की कई खूबियां होती हैं। इनके चारे की कोई खास चिंता नहीं करनी होती. जो भी चारा डाल दो गधा उसे ही खाकर पेट भर लेता है।

दूसरी सबसे बडी खूबी है कि गधे को एक बार रास्ता बताने के बाद वह बगैर बताए या हांके अपनी जगह पहुंच जाता है। जिस वजह से इसे सबसे ज्यादा धोबी या ईंट और सामान ढुलाई का काम करने वाले कुम्हार जाति के लोग खरीदते और पालन करते हैं।

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